Yatharth Sandesh
15 Dec, 2017 (Hindi)
National
अन्य धर्मिय व्यक्ति के साथ विवाह करने से नहीं बदलता पत्नी का धर्म : सर्वोच्च न्यायालय
Sub Category: Bhakti Geet
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नई देहली : विशेष विवाह अधिनियम के तहत दूसरे धर्म के पुरुष से विवाह करने पर महिला का स्वत: पति के धर्म में परिवर्तन नहीं हो जाता। विवाह के बाद भी महिला की व्यक्तिगत पहचान और धर्म बना रहता है जबतक कि वह स्वयं अपना धर्म परिर्वतन न कर ले। ये टिप्पणी गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दू पुरुष से विवाह करनेवाली पारसी महिला के स्वत: धर्म परिवर्तन के उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए की। इसके साथ ही न्यायालय ने बलसाड़ पारसी अंजुमन से पूछा है कि क्या वह याचिकाकर्ता महिला को पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की अनुमती दे सकते हैं। न्यायालय मामले पर १४ दिसंबर को फिर सुनवाई करेगा।
इस मामले में विशेष विवाह अधिनियम के तहत हिन्दू व्यक्ति से विवाह करनेवाली पारसी महिला गुलरुख एम गुप्ता ने अपने मूल धर्म का अधिकार मांगा है और पारसी मान्यता के अनुसार, पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने का हक मांगा है। उसने गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा था कि दूसरे धर्म के पुरुष से विवाह करने के बाद महिला का धर्म पुरुष के धर्म में स्वत: परिवर्तित हो जाता है। उच्च न्यायालय ने प्रथागत कानून को सही ठहराया था। मामले पर गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षतावाली पांच सदस्यीय पीठ ने सुनवाई शुरू की। याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने उच्च न्यायालय के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि उनकी मुवक्किल ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत हिन्दू पुरुष से विवाह की थी। उसने अपना धर्म नहीं छोड़ा था। विशेष विवाह अधिनियम बगैर धर्म परिवर्तन के दूसरे धर्म में विवाह की अनुमती देता है। ऐसे में उसका विवाह के बाद स्वत: धर्म परिवर्तन कैसे हो जाएगा। उन्होंने इसे महिलाओं के साथ भेदभाव से भी जोड़ा।
उन्होंने कहा कि पुरुष का दूसरे धर्म की स्त्री से विवाह करने से परिवर्तित नहीं होता तो फिर स्त्री का कैसे हो सकता है। जयसिंह ने कहा कि यहां मर्जर आफ रिलीजन का कामन ला का सिद्धांत कैसे लागू हो सकता है। उन्होंने कहा कि न्यायालय को इस कानून को भी परखना चाहिए।
गुलरुख ने याचिका मे संविधान के तहत मिले बराबरी और धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकारों के हनन की दुहाई देते हुए पारसी मान्यता के मुताबिक पिता के अंतिम संस्कार के लिए टावर आफ साइलेंस में जाने की इजाजत मांगी है। इन दलीलों पर पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश से प्रथमदृष्टया असहमति जताते हुए कहा कि अगर महिला ने विशेष विवाह अधिनियम में दूसरे धर्म के व्यक्ति से विवाह की है तो फिर उसका धर्म स्वत: पति के धर्म में कैसे परिवर्तित हो जाएगा जब तक कि वह स्वयं धर्म परिवर्तन न करे।
हालांकि दूसरी तरफ से पारसी ट्रस्ट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि पारसी समुदाय मानता है कि व्यक्ति को धर्म के अंदर ही विवाह करना चाहिए। और धर्म के बाहर विवाह करनेवाले को पारसी धर्म की मान्यताओं में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं होता। पीठ ने उनसे कहा कि वे ट्रस्ट से निर्देश लेकर न्यायालय को बताएं कि क्या याचिकाकर्ता को पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की इजाजत दी जा सकती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि धर्म को बहुत ज्यादा सख्त नही होना चाहिए इससे उसमें कम लोग जुड़ते हैं धर्म की यह अवधारणा नही होती। धर्म अगर थोड़ा लचीला होगा तो उसमें ज्यादा लोग जुड़ेंगे। पीठ ने कहा कि ट्रस्ट को मामले पर मानवता की दृष्टि से और पिता व पुत्री की भावनाओं का ख्याल रखते हुए विचार करना चाहिए। सुब्रमण्यम ने निर्देश लेकर सूचित करने के लिए न्यायालय से कुछ समय मांगा न्यायालय ने अनुरोध स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई १४ दिसंबर तक के लिए टाल दी।
स्त्रोत : जागरण
इस मामले में विशेष विवाह अधिनियम के तहत हिन्दू व्यक्ति से विवाह करनेवाली पारसी महिला गुलरुख एम गुप्ता ने अपने मूल धर्म का अधिकार मांगा है और पारसी मान्यता के अनुसार, पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने का हक मांगा है। उसने गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा था कि दूसरे धर्म के पुरुष से विवाह करने के बाद महिला का धर्म पुरुष के धर्म में स्वत: परिवर्तित हो जाता है। उच्च न्यायालय ने प्रथागत कानून को सही ठहराया था। मामले पर गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षतावाली पांच सदस्यीय पीठ ने सुनवाई शुरू की। याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने उच्च न्यायालय के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि उनकी मुवक्किल ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत हिन्दू पुरुष से विवाह की थी। उसने अपना धर्म नहीं छोड़ा था। विशेष विवाह अधिनियम बगैर धर्म परिवर्तन के दूसरे धर्म में विवाह की अनुमती देता है। ऐसे में उसका विवाह के बाद स्वत: धर्म परिवर्तन कैसे हो जाएगा। उन्होंने इसे महिलाओं के साथ भेदभाव से भी जोड़ा।
उन्होंने कहा कि पुरुष का दूसरे धर्म की स्त्री से विवाह करने से परिवर्तित नहीं होता तो फिर स्त्री का कैसे हो सकता है। जयसिंह ने कहा कि यहां मर्जर आफ रिलीजन का कामन ला का सिद्धांत कैसे लागू हो सकता है। उन्होंने कहा कि न्यायालय को इस कानून को भी परखना चाहिए।
गुलरुख ने याचिका मे संविधान के तहत मिले बराबरी और धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकारों के हनन की दुहाई देते हुए पारसी मान्यता के मुताबिक पिता के अंतिम संस्कार के लिए टावर आफ साइलेंस में जाने की इजाजत मांगी है। इन दलीलों पर पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश से प्रथमदृष्टया असहमति जताते हुए कहा कि अगर महिला ने विशेष विवाह अधिनियम में दूसरे धर्म के व्यक्ति से विवाह की है तो फिर उसका धर्म स्वत: पति के धर्म में कैसे परिवर्तित हो जाएगा जब तक कि वह स्वयं धर्म परिवर्तन न करे।
हालांकि दूसरी तरफ से पारसी ट्रस्ट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि पारसी समुदाय मानता है कि व्यक्ति को धर्म के अंदर ही विवाह करना चाहिए। और धर्म के बाहर विवाह करनेवाले को पारसी धर्म की मान्यताओं में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं होता। पीठ ने उनसे कहा कि वे ट्रस्ट से निर्देश लेकर न्यायालय को बताएं कि क्या याचिकाकर्ता को पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की इजाजत दी जा सकती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि धर्म को बहुत ज्यादा सख्त नही होना चाहिए इससे उसमें कम लोग जुड़ते हैं धर्म की यह अवधारणा नही होती। धर्म अगर थोड़ा लचीला होगा तो उसमें ज्यादा लोग जुड़ेंगे। पीठ ने कहा कि ट्रस्ट को मामले पर मानवता की दृष्टि से और पिता व पुत्री की भावनाओं का ख्याल रखते हुए विचार करना चाहिए। सुब्रमण्यम ने निर्देश लेकर सूचित करने के लिए न्यायालय से कुछ समय मांगा न्यायालय ने अनुरोध स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई १४ दिसंबर तक के लिए टाल दी।
स्त्रोत : जागरण
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