Yatharth Sandesh
26 Feb, 2018 (Hindi)
Ancient Bhartiya Culture
संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से बढती है स्मरणशक्ति – डॉ. जेम्स हार्टजेल, न्यूरो साइंटिस्ट, अमेरिका
Sub Category: Bhakti Geet
/
0
Reviews
/ Write a Review
3319 Views
हमें पता है कि संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा है । हिन्दुआें के धर्मग्रंथ भी इसी भाषा में है । संस्कृत को हम देववाणी भी कहते है । प्राचीन काल में शिक्षा इसी भाषा में दी जाती थी । इसलिए प्राचीन काल के लोग संस्कारी, चारित्र्यवान, शिलवान, धर्मपरायण, कर्तव्यनिष्ठ थे। परंतु जैसे ही मेकॉले की शिक्षा पद्धती भारत में आर्इ, हमारी महान संस्कृत को हम भुल गए । मेकाॅले की मॉडर्न शिक्षाप्रणाली से समाज अधोगती की आेर जाता दिखार्इ दे रहा है। जिसके परिणाम आज हम देख रहे है कि, सभी आेर भ्रष्ठाचार, बलात्कार, व्यभीचार, घोटाले पनप रहे है । यह किसकी देन है ? आज जहां भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति तथा संस्कृत भाषा को पिछडापन मानकर पाश्चिमी सभ्यता को चुन रहे है, वही पश्चिमी लोग भारत की महान संस्कृती तथा संस्कृत भाषा की आेर आकर्षित हो रहे है । उसपर संशोधन कर रहे है एवं भारतीय संस्कृती की महानता विश्व के सामने ला रहे है । इसके कर्इ उदाहरण हमने देखे है । एेसा ही एक संशोधन आज हम देखेंगे । जिससे आपको अपने भारतीय होनेपर गर्व महसुस होगा । . . . तो आइए संस्कृत भाषा का महत्त्व समझकर उसे बढावा देने हेतु प्रयास करने का संकल्प करते है ।
एक अमेरिकी पत्रिका में दावा किया गया है कि, वैदिक मंत्रों को याद करने से दिमाग के उसे हिस्से में बढोतरी होती है जिसका काम संज्ञान लेना है, यानी की चीजों को याद करना है ।
जनसत्ता समाचारपत्र में छपे समाचार के अनुसार, डॉ. जेम्स हार्टजेल नाम के न्यूरो साइंटिस्ट के इस शोध को साइंटिफिक अमेरिकन नाम के जरनल ने प्रकाशित किया है । न्यूरो साइंटिस्ट डॉ. हार्टजेल ने अपने शोध के बाद ‘द संस्कृत इफेक्ट’ नाम का टर्म तैयार किया है । वह अपने रिपोर्ट में लिखते हैं कि भारतीय मान्यता यह कहती है कि वैदिक मंत्रों का लगातार उच्चारण करने और उसे याद करने का प्रयास करने से स्मरणशक्ति और सोच बढती है । इस धारणा की जांच के लिए डॉ. जेम्स और इटली के ट्रेन्टो यूनिवर्सिटी के उनके साथी ने भारत स्थित नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर के डॉ. तन्मय नाथ और डॉ. नंदिनी चटर्जी के साथ टीम बनाई ।
द हिन्दू’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार, एक्सपर्ट की इस टीम ने ४२ वॉलंटियर्स को चुना, जिनमें २१ प्रशिक्षित वैदिक पंडित (२२ साल) थे । इन लोगों ने ७ सालों तक शुक्ला यजुर्वेद के उच्चारण में पारंगत प्राप्त की थी । ये सभी पंडित देहली के एक वैदिक विद्यालय के थे । जबकि एक कॉलेज के छात्रों में २१ को संस्कृत उच्चारण के लिए चुना गया । इस टीम ने इन सभी ४२ प्रतिभागियों के ब्रेन की मैपिंग की । इसके लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया । नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर के पास मौजूद इस तकनीक से दिमाग के अलग अलग हिस्सों का आकार की जानकारी ली जा सकती है ।
टीम ने जब २१ पंडितों और २१ दूसरे वालंटियर्स के ब्रेन की मैपिंग की तो दोनों में काफी अंतर पाया गया । उन्होंने पाया कि वे छात्र जो संस्कृत उच्चारण में पारंगत थे उनके दिमाग का वो हिस्सा, जहां से याददाश्त, भावनाएं, निर्णय लेने की क्षमता नियंत्रित होती है, वो ज्यादा सघन था । इसमें ज्यादा अहम बात यह है कि दिमाग की संरचना में ये परिवर्तन तात्कालिक नहीं थे बल्कि वैज्ञानिकों के अनुसार, जो छात्र वैदिक मंत्रों के उच्चारण में पारंगत थे उनमें बदलाव लंबे समय तक रहने वाले थे । इसका अर्थ यह है कि संस्कृत में प्रशिक्षित छात्रों की याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता, अनुभूति की क्षमता लंबे समय तक कायम रहने वाली थी ।
एक अमेरिकी पत्रिका में दावा किया गया है कि, वैदिक मंत्रों को याद करने से दिमाग के उसे हिस्से में बढोतरी होती है जिसका काम संज्ञान लेना है, यानी की चीजों को याद करना है ।
जनसत्ता समाचारपत्र में छपे समाचार के अनुसार, डॉ. जेम्स हार्टजेल नाम के न्यूरो साइंटिस्ट के इस शोध को साइंटिफिक अमेरिकन नाम के जरनल ने प्रकाशित किया है । न्यूरो साइंटिस्ट डॉ. हार्टजेल ने अपने शोध के बाद ‘द संस्कृत इफेक्ट’ नाम का टर्म तैयार किया है । वह अपने रिपोर्ट में लिखते हैं कि भारतीय मान्यता यह कहती है कि वैदिक मंत्रों का लगातार उच्चारण करने और उसे याद करने का प्रयास करने से स्मरणशक्ति और सोच बढती है । इस धारणा की जांच के लिए डॉ. जेम्स और इटली के ट्रेन्टो यूनिवर्सिटी के उनके साथी ने भारत स्थित नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर के डॉ. तन्मय नाथ और डॉ. नंदिनी चटर्जी के साथ टीम बनाई ।
द हिन्दू’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार, एक्सपर्ट की इस टीम ने ४२ वॉलंटियर्स को चुना, जिनमें २१ प्रशिक्षित वैदिक पंडित (२२ साल) थे । इन लोगों ने ७ सालों तक शुक्ला यजुर्वेद के उच्चारण में पारंगत प्राप्त की थी । ये सभी पंडित देहली के एक वैदिक विद्यालय के थे । जबकि एक कॉलेज के छात्रों में २१ को संस्कृत उच्चारण के लिए चुना गया । इस टीम ने इन सभी ४२ प्रतिभागियों के ब्रेन की मैपिंग की । इसके लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया । नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर के पास मौजूद इस तकनीक से दिमाग के अलग अलग हिस्सों का आकार की जानकारी ली जा सकती है ।
टीम ने जब २१ पंडितों और २१ दूसरे वालंटियर्स के ब्रेन की मैपिंग की तो दोनों में काफी अंतर पाया गया । उन्होंने पाया कि वे छात्र जो संस्कृत उच्चारण में पारंगत थे उनके दिमाग का वो हिस्सा, जहां से याददाश्त, भावनाएं, निर्णय लेने की क्षमता नियंत्रित होती है, वो ज्यादा सघन था । इसमें ज्यादा अहम बात यह है कि दिमाग की संरचना में ये परिवर्तन तात्कालिक नहीं थे बल्कि वैज्ञानिकों के अनुसार, जो छात्र वैदिक मंत्रों के उच्चारण में पारंगत थे उनमें बदलाव लंबे समय तक रहने वाले थे । इसका अर्थ यह है कि संस्कृत में प्रशिक्षित छात्रों की याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता, अनुभूति की क्षमता लंबे समय तक कायम रहने वाली थी ।
Other Blogs
-
अंतिम उपदेश - परमहंस स्वामी श्री बज्रानन्द जी महाराज -
श्री परमहंस आश्रम शिवपुरी (आश्रम दृश्य) -
मोदी जी को उनके जन्म दिन पर उनकी माँ द्वारा गीता भेंट -
discourse on Guru Purnima festival by maharaj ji -
CM Mulayam singh at ashram -
Geeta in education -
Lalu Yadav at asrham -
CM Akhilesh Yadav at Ashram -
CM Akhilesh Yadav at Ashram -
Prseident of India receiving Yatharth Geeta