Yatharth Sandesh

FAQ's

A social organization working to promote and protect Indian culture world wide.

'Yatharth Geeta' is an interpretation of Shrimad Bhagwad Geeta written by Swami Adgadanand Ji Maharaj and available in 32 Languages of World.

परमहंस अड्गड़ प्रश्नोत्तरी
प्र0- किसकी कृपा से यह मानव तन मिलता है? 
उ0- परमपिता परमात्मा की कृपा से।
प्र0- मानव तन की उपयोगिता किसमें हैं? 
उ0- परमात्मा की भक्ति से।
प्र0- मानव तन श्रेष्ठ क्यों है? 
उ0- इससे परमात्मा का दर्शन सुलभ है।
प्र0- मानव तन किसका सराहनीय है? 
उ0- जिसने संतों की सेवा के द्वारा परमात्मा को जान लिया है।
प्र0- परमात्मा का दर्शन क्यों अनिवार्य है? 
उ0- अनन्त दुखमय योनियों से बचने के लिये।
प्र0- अनन्त दुख रूप योनियों में जीव क्यों जाता है? 
उ0- इसी मानव तन से किये हुए कर्म संस्कारों के कारण।
प्र0- परमात्मा का दर्शन किसको होता है? 
उ0- जिसने योग के द्वारा अन्तःकरण को शुद्ध कर लिया है।
प्र0- प्र्रयत्न करते रहने पर भी परमात्मा के दर्शन क्यों नहीं होते हैं? 
उ0- विवेक की कमी से।
प्र0- साधक साधना पथ से क्यों गिर जाता है? 
उ0- विषयों का आदर करने से।
प्र0- साधक किसकी कृपा से परमात्मा का दर्शन करता है? 
उ0- गुरू की कृपा से।
प्र0- विषयों से कौन बचाता है? 
उ0- वही सतगुरू।
प्र0- साधक को सतत् किससे डरना चाहिए? 
उ0- अपने चंचल चित्त से।
प्र0- सतत् किसको सावधान रहना चाहिए? 
उ0- संसार शत्रु से।
प्र0- साधन पथ में सबसे बड़ा विघ्न क्या है? 
उ0- नारी, मान-सम्मान, ऋद्धि-सिद्धि, कुतर्क।
प्र0- साधक को सतत् क्या करना चाहिए? 
उ0- परमात्मा स्वरूप गुरू के चरणों का चिन्तन।
प्र0- साधक विषयों से कैसे बच सकता है? 
उ0- भजन के अतिरिक्त सब दुःख रूप है ऐसी भावना एवं सतत् गुरू चरणों के चिन्तन एवं उनकी कृपा से।
प्र0- मनुष्य के लिये सबसे बड़ा बन्धन क्या है? 
उ0- पारिवारिक लगाव।
प्र0- साधक भटकता कब है? 
उ0- मन के विवेक रहित होने पर।
प्र0- इस संसार में अपना कौन है? 
उ0- केवल आत्मा।
प्र0- सबसे बड़ा सुख क्या है? 
उ0- आत्मा को जानना।
प्र0- सबसे बड़ा दःुख क्या है? 
उ0- कामना।
प्र0- सबसे बड़ा वीर कौन है? 
उ0- जिसने इन्द्रियों को जीत लिया हो।
प्र0- ज्ञानी कौन है? 
उ0- आत्मदर्शी।
प्र0- पवित्र कौन है? 
उ0- योग चिन्तन से शुद्ध किये मन वाला।
प्र0- पंडित कौन है? 
उ0- (वही आत्मदर्शी) जिसका कोई कर्म शेष नहीं।
प्र0- क्षत्रिय कौन है? 
उ0- योग संग्राम में पीठ न दिखाने वाला।
प्र0- वैश्य कौन है? 
उ0- इन्द्रियों को विषयों से बचाने की क्षमता रखने वाला।
प्र0- शूद्र कौन है? 
उ0- परमात्मा प्राप्ति की जिज्ञासा के साथ संतों एवं सद्गुरू की मन, क्रम, वचन से सेवा करने वाला।
प्र0- व्यभिचार क्या है? 
उ0- परमात्म चिन्तन में दूसरे चिन्तन को जगह देना।
प्र0- वर्ण क्या है? 
उ0- आत्मा ही शुद्ध वर्ण है।
प्र0- वर्ण संकर कौन है? 
उ0- आत्मपथ से च्युत होने वाला।
प्र0- सबसे बड़ा दयालु कौन है? 
उ0- जिसने अपनी आत्मा को अधोगति में जाने से बचा लिया है।
प्र0- सबसे बड़ा धनी कौन है? 
उ0- आत्मिक सम्पत्ति वाला।
प्र0- दरिद्र कौन है? 
उ0- कामना वाला।
प्र0- किसका कार्य सराहनीय है? 
उ0- जो सतत् आत्मोद्धार में लगा है।
प्र0- किसका जीवन सार्थक है? 
उ0- जिसने अपने आपको जान लिया है।
प्र0- व्रत क्या है? 
उ0- आत्मा को परमात्मा से मिला देना।
प्र0- उपवास क्या है? 
उ0- परमात्मा के समीप स्थान पा लेना।
प्र0- किसकी पूजा करनी चाहिए? 
उ0- जीवन को पूर्ण करने वाले परमात्म स्वरूप सद्गुरू की।
प्र0- विद्वान कौन है? 
उ0- अन्तःकरण में परमात्मा को जानने वाला।
प्र0- अच्छा हितैषी कौन है? 
उ0- जो आत्मदर्शन में सहयोग दे।
प्र0- भक्ति क्या है? 
उ0- विषयों का चिंतन न करना।
प्र0- योग क्या है? 
उ0- आत्मा से परमात्मा का मिलन।
प्र0- वैराग्य क्या है? 
उ0- विषयों से अलग होकर चिन्तन द्वारा राग से पूर्ण निवृत्ति।
प्र0- वैरागी कौन है? 
उ0- जिसका राग निवृत्त है।
प्र0- उदासी कौन है? 
उ0- सुख-दुख, पाप-पुण्य आदि में जो सम है।
प्र0- त्यागी कौन है? 
उ0- योग के परिणाम में शुभाशुभ का त्याग करने वाला।
प्र0- मौनी कौन है? 
उ0- मन सहित इन्द्रियों को विषयों से सर्वथा अलग रखने वाला (पूर्ण शान्त होना)।
प्र0- वैष्णव कौन है? 
उ0- जो सर्वत्र एक परमात्मा को देखता है।
प्र0- सन्यासी कौन है? 
उ0- यौगिक क्रिया से संकल्प विकल्प का पूर्ण निरोध करने वाला।
प्र0- धर्म क्या है? 
उ0- आत्म दर्शन।
प्र0- धार्मिक कौन है? 
उ0- आत्म दर्शन की विधि जानकर उस पर चलने वाला।
प्र0- कर्म क्या है? 
उ0- जिससे आत्म दर्शन होता है।
प्र0- यज्ञ क्या है? 
उ0- प्रस्वाँस-स्वाँस का हवन (यजन)।
प्र0- हिन्दू कौन है? 
उ0- जिसका हृदय चन्द्रमा की तरह शान्त एवं शीतल है।
प्र0- मुसलमान कौन है? 
उ0- जो पूर्ण धार्मिक है आत्मज्ञान से ओतप्रोत है। (मुसल्लम $ ईमान)
प्र0- सिक्ख कौन है? 
उ0- गुरू के वचनों को आचरण में ढालने वाला।
प्र0- ईसाई कौन है? 
उ0- जिसके हृदय में परमात्मा उतरे (उतरता है)।
प्र0- पारसी कौन है? 
उ0- परमात्मा रूपी अग्नि में जिसका सब कुछ जल गया-पारस बन गया।
प्र0- देवता कौन है? 
उ0- जिसके हृदय मंे परमात्मा से मिलाने वाले गुणों का समूह है।
प्र0- निशाचर कौन हैं? 
उ0- मोह रूपी रात्रि में चलने वाला।
प्र0- वेद क्या है? 
उ0- परमात्मा की प्रत्यक्ष जानकारी।
प्र0- सबसे बड़ा रोग क्या है? 
उ0- काम-क्रोध-लोभ इत्यादि।
प्र0- निदान क्या है? 
उ0- सद्गुरू के चरण कमल।
प्र0- पाप क्या है? 
उ0- जो बार-बार जन्म मृत्यु में डाले।
प्र0- पुण्य क्या है? 
उ0- जो जन्म मृत्यु रूपी दुख से बचा ले।
प्र0- सबसे बड़ा दान क्या है? 
उ0- अपने आपको प्रभु को अर्पित करना।
प्र0- संसार में क्या मिलता है? 
उ0- तृष्णा।
प्र0- परमात्मा में क्या मिलता है? 
उ0- परम शान्ति।
प्र0- मनुष्य का मन इतना चंचल क्यों है? 
उ0- जन्म जन्मान्तरों से संचित संस्कारों के कारण।
प्र0- उसका निरोध कैसे हो? 
उ0- कामना रहित होकर बार-बार गुरू चरणों में लगाने से।
प्र0- सम्प्रदाय क्या है? 
उ0- समत्व की प्राप्ति में एक परदा।
प्र0- आसन क्या है? 
उ0- इच्छाओं से रहित होना।
प्र0- प्राणायाम क्या है? 
उ0- संकल्प विकल्प का रूकना।
प्र0- प्रत्याहार क्या है? 
उ0- इन्द्रियों को अपने विषयों से अलग होना।
प्र0- धारणा क्या है? 
उ0- वृत्ति का ध्येय वस्तु पर रूकना।
प्र0- ध्यान क्या है? 
उ0- उसी वृत्ति का काफी देर रूके रहना।
प्र0- समाधि क्या है? 
उ0- केवल ध्येय मात्र की प्रतीती।
प्र0- सत्य क्या है? 
उ0- आत्मा।
प्र0- असत्य क्या है? 
उ0- प्रकृति।
प्र0- प्रकृति सत्य क्यों लगती है? 
उ0- विवेक की कमी से।
प्र0- मनुष्य का हर समय साथ कौन देता है? 
उ0- सत्कर्म।
प्र0- गुरूकृपा का क्या प्रमाण है? 
उ0- हर समय मन सत्कर्म में लगा रहे।
प्र0- गुरू कौन है? 
उ0- जिसने परमात्मा में विलय पा लिया है जिससे भजन की जागृति होती है।
प्र0- मुनि कौन है? 
उ0- निरन्तर परमात्मा का मनन करने वाला।
प्र0- संत कौन है? 
उ0- जिसके सम्पूर्ण संशय मिट गये हों।
प्र0- शिष्य कौन है? 
उ0- गुरू की आज्ञा पर चलने वाला।
प्र0- शिव कौन है? 
उ0- कल्याण रूवरूप महात्मा।
प्र0- विष्णु कौन है? 
उ0- कण-कण में व्याप्त सत्ता का अनुभव करने वाला।
प्र0- ब्रह्मा कौन है? 
उ0- परमात्मा के अनुभव से संयुक्त बुद्धि वाला।
प्र0- धु्रव क्या है? 
उ0- अचल परमात्मा।
प्र0- नारी क्या है? 
उ0- माया।
प्र0- नर क्या है? 
उ0- माया से निर्लेप अवस्था वाला।
प्र0- दिन क्या है? 
उ0- परमात्मा का प्रकाश
प्र0- रात क्या है? 
उ0- अज्ञानान्धकार।
प्र0- परमार्थ क्या है? 
उ0- आत्मोद्धार।
प्र0- स्वार्थ क्या है? 
उ0- आत्मिक धन अर्जित करना।
प्र0- एकान्त क्या है? 
उ0- संकल्प विकल्प एवं संस्कारों का अभाव।
प्र0- स्वाध्याय क्या है? 
उ0- अपनी कमी देखकर उसे दूर करना।
प्र0- ब्रह्मचर्य क्या है? 
उ0- सब इन्द्रियों को समेटकर ब्रह्मपथ पर चलना।
प्र0- ज्ञान क्या है? 
उ0- परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन।
प्र0- अज्ञान क्या है? 
उ0- मोह में पड़कर बार-बार मृत्यु का वरण करना।
प्र0- शास्त्र क्या है? 
उ0- उसी अनुभवी संचार को जानना।
प्र0- शास्त्रार्थ क्या है? 
उ0- परमात्मा का अनुभवी संचार।
प्र0- पवित्र कौन है? 
उ0- विकार रहित मन वाला।
प्र0- अपवित्र कौन है? 
उ0- विषयों का चिन्तन करने वाला।
प्र0- सबसे बड़ा लाभ क्या है? 
उ0- परमात्मा को जानना।
प्र0- पूजा क्या है? 
उ0- जीवन को पूर्ण बनाने वाले गुणों का संग्रह करना।
प्र0- पत्र, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य क्या है? 
उ0- मात्र भक्त के श्रृद्धा की मूर्त अभिव्यक्ति।
प्र0- सबसे बड़ी हानि क्या है? 
उ0- बार-बार जन्म लेना।
प्र0- अपना कौन है? 
उ0- आत्मा का हित करने वाला।
प्र0- पराया कौन है? 
उ0- जो आत्मदर्शन में बाधक हो।
प्र0- कौन साधक स्वांग रचता है? 
उ0- समाज से अपेक्षा करने वाला।
प्र0- मनुष्य समझते हुये भी सत्य पर क्यों नहीं चल पाता? 
उ0- मोहवश।
प्र0- मुक्ति क्या है? 
उ0- संयोग वियोग से प्रभावित न होना।
प्र0- मनुष्य भय से मुक्त कब होता है? 
उ0- जब परमात्मा को पा लेता है।
प्र0- पाप की निवृत्ति कब एवं कैसे होती है? 
उ0- सत्पुरूष की सेवा, परमात्मा के चिन्तन एवं उसके दर्शन के साथ।
प्र0- कल्याण क्या है? 
उ0- अत्यान्तिक दुखों का नाश एवं परमानन्द की प्राप्ति ही कल्याण है।
प्र0- विवेक क्या है? 
उ0- जो मोह से दूर रखता है।
प्र0- जन्म मरण एवं काम क्रोध लोभ आदि दुःसह रोगों की एक मात्र दया क्या है? 
उ0- सद्गुरू के चरण कमल एवं संतों का समागम।
प्र0- जीव को विविध शरीरों में सुख-दुख, हानि-लाभ, ऊँच-नीच, धनी-निर्धन की गति क्यों मिलती है? 
उ0- मनुष्य योनि में बनाए गए कर्म संस्कारों के कारण।
प्र0- हितैषी कौन है? 
उ0- जो सुख प्राप्ति का हेतु है।
प्र0- शुभ चिन्तन कौन है? 
उ0- जो दुख के मार्ग से बचाए।
प्र0- देखता कौन है सुनता कौन है? 
उ0- मोह रूपी रात्रि से जागने वाला।
प्र0- विषय भोग किसे प्रिय लगते हैं? 
उ0- जो हानि-लाभ, सुख-दुख से बेसुध है।
प्र0- संसार में इतना आकर्षण क्यों है? 
उ0- इंन्द्रियों की चंचलता एवं परिणाम के अभाव में।
प्र0- जन्म क्या है? 
उ0- एक संस्कार से दूसरे संस्कार में जाना।
प्र0- मृत्यु क्या है? 
उ0- संस्कार का क्षय होना।
प्र0- संसार की कुरूपता दिखाई क्यों नहीं देती? 
उ0- विवेक दृष्टि के अभाव में।
प्र0- संसार कब तक रहेगा? 
उ0- जब तक मन है।
प्र0- मनुष्य कल्याण मार्ग में क्यों नहीं चल पाता? 
उ0- इन्द्रियों का दास होने से।
प्र0- इन्द्रियों की दासता से कैसे छूटें? 
उ0- यथार्थ दृष्टि एवं वैराग्य से।
प्र0- ममता के बंधन में बांधने वाला कौन है? 
उ0- नारी।
प्र0- बन्धन से क्या मिलता है? 
उ0- दुःख रूप नरक।
प्र0- अध्यात्म क्या है? 
उ0- आत्मा के आधिपत्य में चलना।
प्र0- आर्य कौन है? 
उ0- जो अविचल भाव से दृढ़तापूर्वक सन्मार्ग में आरूढ है।
प्र0- आर्य की पराकाष्ठा कहाँ है? 
उ0- जिसके पास एक भी श़़त्रु शेष नहीं है।
प्र0- अनार्य कौन है? 
उ0- दुख एवं पाप मार्ग का अनुकरण करने वाला।
प्र0- अनार्य के कार्य क्या हैं? 
उ0- अविद्या का समर्थन एवं प्रचार कर सबको विषयों में व्यस्त रखना।
प्र0- दरिद्रता क्या है? 
उ0- याचना।
प्र0- अमीरी क्या है? 
उ0- कुछ भी न माँगना।
प्र0- हिंसा क्या है? 
उ0- आत्मा को बार-बार गर्भवास की यातना में फैंकना।
प्र0- अहिंसा क्या है? 
उ0- आत्मा का उद्धार।
प्र0- अहिंसक कौन है? 
उ0- जिसने गर्भवास की यातना से स्वयं को बचा लिया व दूसरों को बचाने में तत्पर हैं।
प्र0- हंस कौन है? 
उ0- पुण्य-पाप, हानि-लाभ से अलग होने की क्षमता वाला।
प्र0- परम हंस कौन है? 
उ0- सम्पूर्ण प्राणियों में निर्बेर परमतत्व परमात्मा से संयुक्त एवं उसी भाव को प्राप्त महापुरूष।
प्र0- श्रेंष्ठ संत या साधक की पहचान क्या है?
उ0- जिसकी संगत से जिसकी वाणी से परमात्मा में श्रद्धा हो जाये, मन विकारों को छोड़कर अनुराग, वैराग, त्याग से भरने लगे।