विटामिनों के सन्दर्भ में
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आदमी जितना पैसा कमाकर सम्भ्रान्ति की ओर सरकता है , वह फ़ूड के साथ फैड भी खरीदता है। रेशेदार फलों को खाने वाले आदिम से वह प्रिज़र्वेटिव जूसपायी आधुनिक हो जाता है। भोजन को वह सम्पूर्ण पोषण के लिए अनुपयुक्त समझता है ; उसमें पुष्टि के लिए नाना सप्लीमेंटों की चाहत ज़ोर मारने लगती है।
जितना पैसेवाला समाज , उतना वह सप्लीमेंट-आकांक्षी ! उसे लगता ही नहीं कि गाजर-पपीते से विटामिन ए , चोकर-भूसी से विटामिन बी , खट्टे फलों से विटामिन सी , सूरज की धूप से विटामिन डी और पशु-उत्पादों से विटामिन बी 12 मिल सकते हैं : वह इन सभी के लिए तरह-तरह की गोलियाँ चाहता है। आप मानें-चाहे नहीं , संसार के धनी वर्ग द्वारा पोषित सप्लीमेंट-उद्योग भय और मूर्खता के सम्मेल से पनपता आ रहा है।
विटामिनों के सन्दर्भ में दो भ्रान्तियाँ मुख्य हैं। पहली कि ये नुकसान नहीं करते : सो जितना चाहे उतना भकोस लो। जम कर विटामिन-भोज करो , हानि तो कोई होनी नहीं है। दूसरी यह कि विटामिनों को अमूमन कभी भी भोजन से पाया ही नहीं जा सकता।
हायपरविटामिनोसिस यानी विटामिनीय अति एक सच्चाई है। यह भी रोग है और इसके भी लक्षण होते हैं। कई बार विटामिनों का अधिक सेवन हानिकारक और यहाँ तक मृत्युकारक भी हो सकता है। यह सच है कि विटामिन काफ़ी सुरक्षित होते हैं , लेकिन सुरक्षा का यह अर्थ नहीं कि आप उनपर टूट पड़ें और उन्हें भकोसने लगें।
बाज़ार जिन कई ऊटपटाँग कॉंसेप्टों को बेचता है , उनमें एक विटामिनी मेगाडोज़ भी है। आपको पपीते में विटामिन ए नहीं मिलेगा , अमुक कम्पनी की गोली में उससे दस गुना विटामिन ए है। आपको दलिया और भूसी वाले अनाज में बी नहीं मिलेगा , आप बी कॉम्प्लेक्स रोज़ लगातार खाइए। नींबू का पानी पीते हैं ? हाउ ओल्डफ़ैशन्ड ! आप विटामिन सी की गोलियों का इस्तेमाल कीजिए !
दरअसल ये सभी सुपरफूडीय और मेगाडोज़ीय मूर्खताएँ आपकी जेबें कतरने के लिए हैं। आपके पास पैसा अतिरेक में आ गया है , तर्कशक्ति आयी नहीं है। जीवन में आपके लक्ष्मी प्रचुर है , किन्तु सरस्वती का दारिद्र्य है।
लक्ष्मी-सरस्वती के इसी वैषम्य से जो आधुनिक युग में युक्त हैं , वे ही विटामिनी सप्लीमेंटों के बकरे हैं।