भारत बनाम इंडिया
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भारत इस देश का मात्र नाम ही नहीं है एक सांस्कृतिक और एतिहासिक पहचान है जिसकी गौरव गाथा भारतीय ग्रंथों के पन्नों पन्नों में मौजूद है जो बताती है की भारत ही विश्व की एक मात्र सबसे प्राचीन और सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न राजा भरत के नाम से देश का नाम भारत पड़ा, यह सभी जानते हैं कि भगवान राम भी इसी वंश में हुए थे। राजा भरत ने लोकतंत्र का सर्वोपरि आदर्श समाज को दिया, उन्होंने अपने पुत्र को गद्दी न देकर उससे भी अधिक योग्य प्रजा के एक व्यक्ति को अपने सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाया।अंग्रेजों ने चालाकी से इंडिया यहां के लोगों पर थोप दिया। जो यहां के कुछ राजनीतिज्ञों की अदूरदृष्टिता के चलते भारतीय संविधान में जोड़ दिया गया और इस गुलामी की मानसिकता का शब्द भारत आज 75 साल से अभी तक ढो रहा है। भारत ही इस देश का प्राचीन नाम है, इंडिया गुलामी के प्रतीक के रूप में ब्रिटिशों द्वारा थोपा गया है दुखद बात तो यह है कि अभी तक इंडिया क्यों नही हटाया गया? कहीं गुलामी की मानसिकता अभी तक जीवित तो नहीं है? श्रीलंका आजाद होते ही शिलोन शब्द हटा दिया को ब्रिटिश का दिया हुआ था। अभी हाल पिछले वर्ष टर्की का नाम बदलकर तुर्किए किया जा है। आज भी देखें बॉम्बे से मुंबई, मद्रास से चेन्नई, बैंगलोर से बंगलुरू, इलाहाबाद से प्रयागराज क्यों किया गया क्योंकि हमें अपने आने वाले भविष्य को अपनी समृद्ध और श्रेष्ठ संस्कृति विरासत के रूप में देनी है जिस पर वह गर्व कर सकें न कि गुलामी के पदचिन्ह। राष्ट्रगान में भी शब्द आता है सी भारत भाग्य विधाता ' क्या कोई इंडिया भाग्य विधाता कहेगा? कोई भी स्थान का नाम, व्यक्ति का नाम एक संज्ञा (नाउन) होता जो भाषा बदलने पर भी नही बदलता, अगर किसी का नाम बिंदु है तो क्या उसे इंग्लिश में ड्रॉप कहेंगे? फिर भारत को इंग्लिश में इंडिया क्यों लिखा गया? सवाल तो बहुत हैं क्या कोई इंडिया माता की जय बोलेगा? लोकतंत्र में जनता की इच्छा सर्वोपरि है और भारत की जनता उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी की भावनाएं भारत शब्द के साथ हैं और सभी भारतीय भाषाओं के ग्रंथों में भारत शब्द है भारत माता की जय बोलकर ही भारत के वीर सपूतों ने आजादी के संग्राम में अपने प्राणों की आहूति दी न कि इंडिया माता बोलकर, इंडिया शब्द उन वीर शहीदो का अपमान है। इसलिए कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा नाम दिया था न कि इंडिया जोड़ो यात्रा जो कि कोलोनियल मानसिकता है। नेहरू ने जो बुक लिखी भारत एक खोज, उसके इंग्लिश ट्रांसलेशन को डिस्कवरी ऑफ इंडिया नाम दिया गया को कि गलत है क्या रामायण के इंग्लिश अनुवाद को द हाउस ऑफ राम कहा जायेगा? अब प्रश्न यह उठता है कि वह कौन लोग हैं जो भारत पर इंडिया थोपना चाहते हैं।और क्यों इंडिया हटाने का विरोध कर रहे हैं वह क्यों नहीं चाहते कि भारतीय संस्कृति और भारत विश्व में पुनः अपनी विशेष पहचान बनाए। जैसे की विष्णु पुराण में है।
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् |
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ||
समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उसकी संतानों (नागरिकों) को भारती कहते हैं। - विष्णु पुराण २.३.१
योगेश्वर श्री कृष्ण ने भी गीता में अर्जुन को भारत कह कर संबोधित करते हुए कहा - इसे सुनें
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”
2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका में फैसला देते हुए कहा कि इसमें संसद को ही निर्णय लेने का अधिकार है, हम कुछ नहीं कर सकते तो अब समय आ गया है कि जो नाम विदेशियों द्वारा दिया गया है अब इस चस्मे को उतार देना चाहिए इससे कहीं भी हमारी संस्कृति का जुड़ाव नहीं होता है। कुछ लोग तर्क देते हैं नाम से क्या होगा देश तो वही रहता है! जिस देश के लोग अपनी संस्कृति और इतिहास को नहीं संजो पाते वह इतिहास के पन्ने में खो जाते हैं इसलिए एक शायर ने लिखा कि यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जवां हमारा। वह हमारी संस्कृति है जो हजारों सालों से हमारे ऊपर हमले होते रहे, शक आए, हूड आए मुगल आए, डच आए फ्रांसिस आए अंग्रेज आए फिर भी आज भारत जीवित है क्योंकि हमारी सांस्कृतिक जड़ें बहुत गहराई तक भारत के जनमानस के ह्रदय में समाई थी और आज पुनः इस अमृत काल में भारत विश्व का प्रतिनिधित्व कर रहा है। -- स्वामी आशुतोषानन्द, शिष्य परमहंस स्वामी श्री बज्रानन्द जी महाराज श्री परमहंस आश्रम, (सन्यासी कुटी), ग्राम घोड़ी, पलवल, हरियाणा
आज वैचारिक क्षेत्र में भारत बनाम इंडिया की जंग चल रही है। आज कुछ लोग खुद को भारत वासी कहने में गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं , यहां की जमीन में पैदा भी हुए लेकिन में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि इन लोगों का चिंतन रहन-सहन, वेश -भूषा बिल्कुल भी भारतीय नहीं है। मानसिक रूप से अधिकांश लोग आज भी गुलाम मानसिकता में ही जी रहे हैं, जब तक सर्वांगीण रूप से हम भारतीय नहीं होंगे , भारत भारत चीखने से कुछ हासिल नहीं होगा। अगर हम खुद को भारतीय मानते है तो भारत का जीवन दर्शन संपूर्ण रूप से लाना होगा। जो सरकार अपने को राष्ट्रवादी मानती है तो उसे जमीनी तौर पर सिद्ध करना चाहिए। देश आज भी यथास्थितिवाद में ही जी रहा है, आम आदमी के जीवन में अफसरशाही का दखल बढ़ता जा रहा है, देश को बादशही से छुटकारा तो मिल गया मगर अफसरशाही से आज भी गुलाम है। इसका अर्थ है कि आम आदमी को गुलामी की ओर धकेला जा रहा है। राष्ट्रवाद का अर्थ है जन जन का गरिमामय जीवन, यह राष्ट्रवाद का प्राण है। आज आम आदमी को भीड़ में बदला जा रहा है देश में आर्थिक सुधार की बड़ी बड़ी बातें करने के बाद भी समाज में आर्थिक संतुलन की खाई गहरी होती जा रही है। आम आदमी आज भी खाद, पानी, राशन के लिए लाइन में लगा हुआ है, हर किसान आज कर्ज के बोझ से दबा हुआ है, क्या यही है नए भारत की पहचान? - स्वामी आशुतोषानन्द