श्री कृष्ण जन्माष्टमी
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- श्री कृष्ण जन्माष्टमी -
भगवान श्री कृष्ण की वाणी गीता दुनिया के सभी महापुरुषों की प्रतिध्वनि है। सृष्टि में अभी तक कोई ऐसा महापुरुष नहीं पैदा हुआ जिसने गीता से बाहर या अधिक कोई संदेश दिया हो और भविष्य में भी उम्मीद नहीं है
भगवान श्री कृष्ण ने कहा -
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च।।10.9।।
मुझमें ही जिनका चित्त है वे मच्चित्त हैं तथा मुझमें ही जिनके चक्षु आदि इन्द्रियरूप प्राण लगे रहते हैं -- मुझमें ही जिन्होंने समस्त करणोंका उपसंहार कर दिया है वे मद्गतप्राण हैं अथवा जिन्होंने मेरे लिये ही अपना जीवन अर्पण कर दिया है ऐसे मेरे भक्त आपसमें एक दूसरेको ( मेरा तत्त्व ) समझाते हुए एवं ज्ञान? बल और सामर्थ्य आदि गुणोंसे युक्त मुझ परमेश्वरके स्वरूपका वर्णन करते हुए सदा संतुष्ट रहते हैं अर्थात् संतोषको प्राप्त होते हैं और रमण करते हैं
इसी बात को भगवान राम ने भी कहा -
कबहूँ काल न ब्यापिहि तोही। सुमिरेसु भजेसु निरंतर मोही॥
प्रभु बचनामृत सुनि न अघाऊँ। तनु पुलकित मन अति हरषाऊँ॥1॥
अर्थात तुझे काल कभी नहीं व्यापेगा। निरंतर मेरा स्मरण और भजन करते रहना। प्रभु के वचनामृत सुनकर मैं तृप्त नहीं होता था। मेरा शरीर पुलकित था और मन में मैं अत्यंत ही हर्षित हो रहा था॥1॥
भगवान बुद्ध ने भी यही कहा -
वे सतत ध्यान करने वाले, नित्य द्रिढ़ पराक्रम करने वाले धीर पुरुष उत्कृष्ट योगक्षेम अर्थात निर्वाण को प्राप्त कर लेते हैं। (२३,धम्मपद)
पूज्य परमहंस जी महाराज ने भी कहा -
जागत में सुमिरन करे, सोवत में लो लाय।
सूरत डोर लागी रहे तार टूट न जाए।
महर्षि पतंजलि ने भी यही कहा -
स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितो दृढभूमिः ॥१.१४॥
बहुत समय तक निरन्तर और श्रद्धा के साथ सेवन किया हुआ वह अभ्यास दृढ़ अवस्था वाला हो जाता है।
हमारे गुरु महाराज ने भी कहा -
माया बिल्ली चित चूहा, बैठी घात लगाए।
जबहु बाहर होउगे, एक पलक में खाय।
तथा इस नश्वर देह का त्याग करने से पूर्व भी अपने अंतिम सत्संग में सभी भक्तों को संबंधित करते हुए कबीरदास जी का भजन ' टूटे न तार भजन कर निशदिन...' सुनाया, अर्थात भजन का तारतम्य टूटने न पाए। भजन का लिंक साथ में दिया हुआ है। कहने का तात्पर्य है कि दुनिया के सभी महापुरुषों ने एक ही संदेश दिया है, कि लगातार भजन में लगे रहो।
गुरु मूरत मुख चंद्रमा, सेवक नयन चकोर।
आठ पहर निरखत रहूं, श्री गुरु चरणन की ओर।
आठ प्रहार अर्थात 24 घंटे, और किसी के भी पास इससे कम या अधिक समय नहीं है।
ओम श्री सदगुरू देव भगवान की जय।
- स्वामी आशुतोषानन्द
शिष्य परमहंस स्वामी श्री बज्रानन्द जी महाराज