‘समझौता ब्लास्ट’ का सच – हिन्दू आतंकवाद का झुठ फैलाने के लिए पाकिस्तानीयों को बचाया, हिन्दुआें को फंसाया ‘समझौता ब्लास्ट’ का सच – हिन्दू आतंकवाद का झुठ फैलाने के लिए पाकिस्तानीयों को बचाया, हिन्दुआें को फंसाया
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नई देहली : समझौता ब्लास्ट केस में एक बडा खुलासा हुआ है। समझौता ब्लास्ट केस को बहाना बनाकर हिन्दू आतंकवाद का झुठ फैलाया गया। पाकिस्तानियों को बचाने के लिए और हिन्दुस्तानियों को फंसाने के लिए २००७ में हुए समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट का उपयोग किया गया। इस केस में पाकिस्तानी आतंकवादी पकडा गया था, उसने अपना गुनाह भी कबूल किया था परंतु महज १४ दिनों में उसे चुपचाप छोड दिया। इसके बाद इस केस में स्वामी असीमानंद को फंसाया गया ताकि भगवा आतंकवाद या हिन्दू आतंकवाद को अमली जामा पहनाया जा सके।
समझौता केस के जांच अधिकारी का खुलासा
हादसा १० वर्ष पुराना है परंतु ये खुलासा केवल बारह दिन पहले हुआ जब जांच अधिकारी ने न्यायालय में अपना बयान दर्ज करवाया। परंतु बडा सवाल ये है कि, पाकिस्तानी आतंकवादी को छोडने का आदेश देने वाला कौन था ? किसने पाकिस्तानी आतंकवादी को छोडने के लिए कहा ? वो कौन है जिसके दिमाग में भगवा आतंकवाद की खतरनाक सोच आर्इ…
१८ फरवरी २००७ को समझौता एक्सप्रैस में ब्लास्ट हुआ था इसमें ६८ लोग मारे गए। १० वर्ष से ज्यादा हो गए हैं, परंतु अबतक अंतिम निर्णय नहीं आया है। इस केस में दो पाकिस्तानी संदिग्ध पकडे गए, इनमें से एक ने गुनाह कबूल किया परंतु पुलिस ने केवल १४ दिन में जांच पूरी करके उसे बेगुनाह करार दिया। न्यायालय में पाकिस्तानी संदिग्ध को केस से बरी करने की अपील की गई और न्यायालय ने पुलिस की बात पर विश्वास किया और पाकिस्तानी संदिग्ध आजाद हो गया। फिर कहां गया ये किसी को नहीं पता….क्या ये सब संयोग था या फिर एक बडा राजनीतिक षडयंत्र था ?
इस केस से जुडे डॉक्युमेंट्स सामने आए है जिसे देखने के बाद पता चलता है कि, उस समय की सरकार को २ पाकिस्तानी संदिग्ध को छोडने की इतनी जल्दी क्यों थी ? फिर अचानक इस केस में हिन्दु आतंकवाद कैसे आ गया ?
इस केस के पहले इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर थे इंस्पेक्टर गुरदीप सिंह जो कि अब रिटायर हो चुके हैं। गुरदीप सिंह ने ठीक १२ दिन पहले ९ जून को न्यायालय में अपना बयान रिकॉर्ड करवाया है। इस बयान में इंस्पेक्टर गुरदीप से ने कहा है, ‘ये सही है कि, समझौता ब्लॉस्ट में पाकिस्तानी अजमत अली को गिरफ्तार किया गया था। वो बिना पासपोर्ट के, बिना लीगल ट्रैवल डाक्यूमेंटस के भारत आया था। देहली, मुंबई समेत देश के कई शहरों में घूमा था। मैं अजमत अली के साथ उन शहरों में गया जहां वो गया था। उसने इलाहाबाद में जहां जाने की बात कही वो सही निकली परंतु अपने सीनियर अधिकारियों, सुपिरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस भारती अरोडा और डीआईजी के निर्देष के अनुसार, मैने अजमत अली को न्यायालय से बरी करवाया।’ इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर ने न्यायालय को जो बयान दिया वो काफी हैरान करनेवाला है।
‘ऊपर से आदेश आया, पाकिस्तानी संदिग्ध छोडा गया’
पुलिस अधिकारी ऐसा तभी करते हैं जब उन पर ऊपर से दवाब आता है। आखिर इतने सीनियर अधिकारियों को पाकिस्तानी संदिग्ध को छोडने के लिए किसने दबाव बनाया ? एक ब्लास्ट केस में केवल १४ दिन में पुलिस ने ये कैसे तय कर लिया कि, आरोपी बेगुनाह है और उसे छोड देना चाहिए ?
अबतक की कहानी साफ है समझौता ट्रेन में ब्लास्ट हुआ, इस ब्लास्ट के दो आईविटनेसेज ने ट्रेन में बम रखने वालों का हुलिया बताया, उसके आधार पर दो लोगो के स्केच बने, उन्हें अटारी रेलवे पुलिस ने गिरफ्तार किया और फिर पूछताछ करने के बाद समझौता ब्लास्ट की जांच कर रही टीम को सौंप दिया। इस टीम ने भी उसका चेहरा स्केच से मिला कर देखा, चेहरा मिलता जुलता दिखा, तो उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर दिया। न्यायालय ने इसे १४ दिन की पुलिस रिमांड में भेज दिया। १४ दिन की पुलिस रिमांड में पूछताछ हुई।
पूछताछ और जांच के बाद उम्मीद थी कि, कुछ सच्चार्इ सामने आएगी परंतु १४ दिन बाद, २० मार्च को जब पुलिस ने दुबारा अजमत अली को न्यायालय में पेश किया तब उम्मीद थी कि, पुलिस दुबारा उसका रिमांड मांगेगी, परंतु हुआ उल्टा। पुलिस ने न्यायालय को बताया कि, उनकी जांच पूरी हो गयी है, अजमत अली के विरुध्द कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं, इसलिए उसे इस केस से डिस्चार्ज कर दिया जाए। न्यायालय ने पुलिस की दलील पर भरोसा किया और न्यायालय ने अपने आदेश में लिखा कि, अजमत अली की रिहाई की अर्जी पुलिस ने ये कहते हुए दी है कि, मौजूदा केस की जांच में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। जब जांच टीम ने ही ये कह दिया तो न्यायालय ने अजमत अली को रिहा कर दिया।
बता दें कि, तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने एआयसीसी की मीटिंग में भगवा आतंकवाद की बात करके सबको चौंका दिया था। समझौता ब्लास्ट के केस में जिस तरह से पहले लश्कर ए तैयबा का नाम आया फिर उस समय की सरकार ने पाकिस्तानियों को छोड दिया और स्वामी असीमानंद को आरोपी बनाकर इस केस को पूरी तरह पलट दिया….इसके पीछे एक सोची समझी साजिश थी।
अब ये साफ है कि, भगवा आतंकवाद दिखाने के लिए, हिन्दू आतंकवाद का हब्बा खडा करने के लिए इस केस में पाकिस्तानियों को बचाया गया और हिन्दुस्तानियों को फंसाया गया। अब सवाल केवल इतना है कि इस साजिश के पीछे किसका शातिर दिमाग था ? क्या पी चिदंबरम, दिग्विजय सिंह या सुशील कुमार शिन्दे में से कोई इस साजिश में शामिल था…..ये सच बाहर आना जरूरी है।
स्त्रोत : खबर इंडिया