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Yatharth Sandesh
05 Jul, 2017(Hindi)
Herbal Treatment

बहेड़ा के इन 45 अद्भुत फायदो से आप अभी तक है अनजान, बहेड़ा मतलब रोगों को शरीर से बाहर निकाल फेकना

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बहेड़ा बहुत काम का फल है इसे हिन्दी में बहेड़ा, संस्कृत में विभीतक, अंग्रेजी में बेलेरिक मिरोबोलम (beleric myrobalan), मराठी में बहेड़ा, गुजराती में बहेड़ां, बंगाली में बहेड़े, कर्नाटकी में तारीकायी, मलयालम में तान्नि, तमिल में अक्कनडं और तेलगू में बल्ला कहते है। इसका रंग भूरा पीलापन लिए होता है। इसका स्वाद मीठा होता है। बहेड़ा का स्वभाव शीतल होता है, इसकी प्रकृति गर्म होती है। लेकिन दुर्भाग्य यह है की बहेड़ा फल के बीज के अन्दर जो मींगी होती है उसका औषधीय उपयोग होता है ,जो या तो बीज के साथ फेंक दी जाती है या कुछ कंपनियों द्वारा बीज के साथ ही पीस दी जाती है। नतीजा यह निकलता है की इससे बनी दवा काम नहीं करती है। जबकि यह बेहद पौष्टिक फल होता है।
बहेड़ा के फल में बेलैरीकैनिन ,फैटीक एसिड, फ्रक्टोज, रहामनोज, गैलेक्टोज, मैनीटाल, चैबुलेजिक एसिड, ग्लूकोज, गैलायल, एलैजिक एसिड, गेलिक एसिड, बीटासिटोस्तीराल आदि तत्व मौजूद है। इसके बीज मे प्रोटीन और आक्जेलिक एसिड की प्रचुर मात्रा होती है। बहेड़ा के सेवन की मात्रा 3 ग्राम से 6 ग्राम तक होनी चाहिए।
बहेड़ा कब्ज को दूर करने वाला होता है। यह मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है, भूख को बढ़ाता है, वायु रोगों को दस्तों की सहायता से दूर करता है, पित्त के दोषों को भी दूर करता है, सिर दर्द को दूर करता है, बवासीर को खत्म करता है, आंखों व दिमाग को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाता है, यह कफ को खत्म करता है तथा बालों की सफेदी को मिटता है। बहेड़ा-कफ तथा पित्त को नाश करता है तथा बालों को सुन्दर बनाता है। यह स्वर भंग (गला बैठना) को ठीक करता है। यह नशा, खून की खराबी और पेट के कीड़ों को नष्ट करता है तथा क्षय रोग (टी.बी) तथा कुष्ठ (कोढ़, सफेद दाग) में भी बहुत लाभदायक होता है।
➡ बहेड़ा (beleric myrobalan) के 45 चमत्कारी फायदे :

कब्ज : बहेड़े के आधे पके हुए फल को पीस लेते हैं। इसे रोजाना एक-एक चम्मच की मात्रा में थोड़े से पानी से लेने से पेट की कब्ज समाप्त हो जाती है और पेट साफ हो जाता है।
श्वास या दमा : बहेड़े और धतूरे के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते हैं इसे चिलम या हुक्के में भरकर पीने से सांस और दमा के रोग में आराम मिलता है।
बहेड़े को थोड़े से घी से चुपड़कर पुटपाक विधि से पकाते हैं। जब वह पक जाए तब मिट्टी आदि हटाकर बहेड़ा को निकाल लें और इसका वक्कल मुंह में रखकर चूसने से खांसी, जुकाम, स्वरभंग (गला बैठना) आदि रोगों में बहुत जल्द आराम मिलता है।
केवल बहेड़े का छिलका मुंह में रखने से भी सांस की खांसी दूर हो जाती है।
40 ग्राम बहेड़े का छिलका, 2 ग्राम फुलाया हुआ नौसादर और 1 ग्राम सोनागेरू लें। अब बहेड़े के छिलकों को बहुत बारीक पीसकर छान लें और उसमें नौसादर व गेरू भी बहुत बारीक करके मिला देते हैं। इसे सेवन करने से सांस के रोग में बहुत लाभ मिलता है। मात्रा : उपयुर्क्त दवा को 2-3 ग्राम तक शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग ठीक हो जाता है।
250 ग्राम बहेड़े के फल का गूदा लेकर पीसकर छान लें और फिर इसमें 10 ग्राम फूलाया हुआ नौसादर और 5 ग्राम असली सोनागेरू लेकर पीसकर मिला दें। अब इस तैयार सामग्री को 3 ग्राम रोजाना सुबह व शाम को शहद में मिलाकर चाटने से सांस लेने में फायदा मिलता है तथा इससे धीरे-धीरे दमा भी खत्म हो जाता है।
बहेड़े के छिलकों का चूर्ण बनाकर बकरी के दूध में पकायें और ठण्डा होने पर शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार रोगी को चटाने से सांस की बीमारी दूर हो जाती है।
बालों के रोग : 2 चम्मच बहेड़े के फल का चूर्ण लेकर एक कप पानी में रात भर भिगोकर रख देते हैं और सुबह इसे बालों की जड़ पर लगाते हैं। इसके एक घंटे के बाद बालों को धो डालते हैं। इससे बालों का गिरना बंद हो जाता है।
अतिसार (दस्त) : बहेड़ा के फलों को जलाकर उसकी राख को इकट्ठा कर लेते हैं। इसमें एक चौथाई मात्रा में कालानमक मिलाकर एक चम्मच दिन में दो-तीन बार लेने से अतिसार के रोग में लाभ मिलता है।
2 से 5 ग्राम बहेड़े के पेड़ की छाल और 1-2 लौंग को 1 चम्मच शहद में पीसकर दिन में 3-4 बार रोगी को चटाने से दस्त बंद हो जाते हैं। या बहेड़े को भूनकर खाने से पुराने दस्त बंद हो जाते हैं।
पेचिश : बहेड़ा के छिलके का चूर्ण एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से लेने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।
मुंहासे : बीजों की गिरी का तेल रोजाना सोते समय मुंहासों पर लगाने से मुंहासे साफ हो जाते हैं और चेहरा साफ हो जाता है।
शक्तिवर्धक : आंवले के मुरब्बे को रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से शरीर मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है।
बच्चों का मलावरोध या लैट्रिन रुकना : बहेडे़ का फल पत्थर से पीसकर आधा चम्मच की मात्रा में एक चम्मच दूध के साथ बच्चे को सेवन कराने से पेट साफ हो जाता है।
स्वित्र कोढ़ या कुष्ठ रोग और पेचिश : बहेड़े के पेड़ की छाल का काढ़ा स्वित्र कोढ़ और पेचिश को नष्ट करता है।
सांस की खांसी : एक बहेड़ा लेकर उसके ऊपर घी चुपड़ दें और आटे में बंदकर आग पर रखकर पका लेते हैं। इसके बाद बहेड़ा को निकालकर उसकी छाल को निकाल लेते हैं। यह छाल अकेले ही बहुत ही तेज सांस और खांसी को दूर करती है। थोड़ी-थोड़ी छाल मुंह में डालकर चूसना चाहिए। इसका प्रयोग करते समय खटाई, मिर्च और तेल का परहेज करना चाहिए और मैथुन क्रिया भी नहीं करनी चाहिए।
हाथ-पैर की जलन : बहेड़े की मींगी (बीज) पानी के साथ पीसकर हाथों और पैरों में लगाने से जलन में आराम मिलता है।
जलन : बहेडे़ के गूदे को बारीक पीसकर शरीर पर लेप करने से सभी भी प्रकार की जलन दूर हो जाती है।
कफ : बहेड़े के पत्ते और उससे दुगुनी चीनी का काढ़ा बनाकर पीने से कफरोग दूर हो जाता है।
बहेड़ा की छाल का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से खांसी मिट जाती है और बलगम आसानी से निकल जाता है। खांसी की गुदगुदी बंद हो जाती है।
कामशक्ति या पौरुष शक्ति बढ़ाना : रोजाना एक बहे़ड़े का छिलका खाने से कामशक्ति तेज हो जाती है।
आंखों की रोशनी बढ़ाये : बहेड़े का छिलका और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच सुबह-शाम गर्म पानी से लेने से दो-तीन सप्ताह में आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
ज्वर या बुखार : 40 से 60 मिलीलीटर बहेड़े का काढा़ सुबह-शाम पीने से पित्त, कफ, ज्वर आदि रोगों में लाभ मिलता है।
खुजली : फल की मींगी का तेल खुजली के रोग में लाभकारी होता है तथा यह जलन को मिटाता है। इसकी मालिश से जलन और खुजली मिट जाती है।
अपच : भोजन करने के बाद 3 से 6 ग्राम विभीतक (बहेड़ा) फल की फंकी लेने से भोजन पचाने की क्रिया तेज होती है। इससे आमाशय को ताकत मिलती है।
खांसी : एक बहेड़े के छिलके का टुकड़ा या छीले हुए अदरक का टुकड़ा सोते समय मुंह में रखकर चूसने से बलगम आसानी से निकल जाता है। इससे सूखी खांसी और दमा का रोग भी मिट जाता है।
3 से 6 ग्राम बहेड़े का चूर्ण सुबह-शाम गुड़ के साथ खाने से खांसी के रोग में बहुत लाभ मिलता है। बहेड़े की मज्जा अथवा छिलके को हल्का भूनकर मुंह में रखने से खांसी दूर हो जाती है।
250 ग्राम बहेड़े की छाल, 15 ग्राम नौसादर भुना हुआ, 10 ग्राम सोना गेरू को एकसाथ पीसकर रख लेते हैं। यह 3 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से सांस का रोग ठीक हो जाता है।
कनीनिका प्रदाह : 2 भाग पीली हरड़ के बीज, 3 भाग बहेड़े के बीज और 4 आंवले की गिरी को एक साथ पीसकर और छानकर पानी में भिगोकर गोली बनाकर रख लें। जरूरत पड़ने पर इसे पानी या शहद में मिलाकर आंखों में रोजाना 2 से 3 बार लगाने से कनीनिका प्रदाह का रोग दूर हो जाता है।
सीने का दर्द : सीने के दर्द में बहेड़ा जलाकर चाटना लाभकारी होता है।
हिचकी का रोग : 10 ग्राम बहेड़े की छाल के चूर्ण में 10 ग्राम शहद मिलाकर रख लें। इसे थोड़ा-थोड़ा करके चाटने से हिचकी बंद हो जाती है।
कमजोरी : लगभग 3 से 9 ग्राम बहेड़ा का चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से कमजोरी दूर होती है और मानसिक शक्ति बढ़ती है।
दिल की तेज धड़कन : बहेड़ा के पेड़ की छाल का चूर्ण दो चुटकी रोजाना घी या गाय के दूध के साथ सेवन करने से दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है।
स्वर यंत्र में जलन : 3 ग्राम से 9 ग्राम बहेड़ा का चूर्ण सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से स्वरयंत्र शोथ (गले में सूजन) और गले में जलन दूर हो जाती है। साथ ही इसके सेवन से गले के दूसरे रोग भी ठीक हो जाते हैं।
गले के रोग : बहेड़े का छिलका, छोटी पीपल और सेंधानमक को बराबर मात्रा में लेकर और पीसकर 6 ग्राम गाय के दही में या मट्ठे में मिलाकर खाने से स्वर-भेद (गला बैठना) दूर हो जाता है।
बहेड़े की छाल को आग में भूनकर चूर्ण बना लें इस चूर्ण को लगभग 480 मिलीग्राम तक्र (मट्ठा) के साथ सेवन करने से स्वरभेद (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
कंठसर्प या गले के चारों ओर सांप के सामान निशान : बहेड़े की वृक्ष की छाल को पानी में पीसकर पिलाना चाहिए। पालतू पशुओं को कंठ सर्प होने पर भी यही औषधि देनी चाहिए।
पालतू पशुओं के घाव में कीड़े पढ़ना : पशुओं के घाव में कीड़े हो जाने पर बहेड़े की छाल को मोटी रोटी के साथ खिलाना चाहिए।
बहेड़े का मुरब्बा : बहेड़े को बर्तन में डालकर उबाल लें और उसके पानी में शक्कर डालकर गाढ़े मुरब्बे के अनुसार- चाशनी को तैयार कर ले फिर उसमें उबाले हुए बहेड़े तथा छोटी पीपल का चूर्ण डालकर किसी बर्तन में रख देते हैं। ज्यों-ज्यों वह मुरब्बा पुराना होता जाएगा, त्यों-त्यों विशेष गुण दिखलाएगा। इस मुरब्बे से खांसी तुरन्त दूर हो जाती है।
मूत्रकृच्छ : बहेड़ा की फल की मींगी का चूर्ण 3-4 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) और पथरी में लाभ मिलता है।
पित्तज प्रमेह : बहेड़ा, रोहिणी, कुटज, कैथ, सर्ज, छत्तीबन, कबीला के फूलों का चूर्ण बनाकर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर 1 चम्मच शहद के साथ मिलाकर पित्तज प्रमेह के रोगी को दिन में तीन बार देना चाहिए।
न*पुंसकता : 3 ग्राम बहेड़े के चूर्ण में 6 ग्राम गुड़ मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से न*पुंसकता मिटती है और का*मोत्तेजना बढ़ती है।
आंत उतरना : पोतों में आंत उतरने पर बहेड़े का लेप करने से पहले ही दिन से फायदा हो जाता है।
बंदगांठ : अरंडी के तेल में बहेड़े के छिलके को भूनकर तेज सिरके में पीसकर बंदगाठ पर लेप करने से 2-3 दिन में ही बंदगांठ बैठ जाती है।
पित्त की सूजन : बहेड़े की मींगी का लेप करने से आंख के पित्त की सूजन दूर हो जाती है। या आंख की पित्त की सूजन पर बहेड़े का लेप करने से लाभ मिलता है।

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Awesome dude

Saroj Kumar mishra

24 Dec, 2020

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