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Yatharth Sandesh
17 Jul, 2017(Hindi)
Ancient Bhartiya Culture

आपका गौरवशाली इतिहास - जर्मनी में हिन्दू धर्म

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आधुनिक युग मे कई विद्ववानों ने संस्कृत भाषा मे गहरी रुचि ली है, खुद नासा वेदों का अध्यनन कर रहा है । लेकीन जर्मनी के लोगो का अन्य यूरोपीय लोगो की तुलना में संस्कृत से कुछ अधिक विशेष लगाव रहा है , इसे केवल योगायोग समझना उचित नही है । जर्मनी जाति की अति-प्राचीन संस्कृत वैदिक परंपरा के कारण ही जर्मनी के लोगो का संस्कृत से विसेष लगाव है । ईसा पूर्व जर्मनी में पूर्णतः संस्कृत भाषा ओर वैदिक परम्परा ही थी । यूरोप के अन्य देशों की भांति जर्मनी पर भी बलपूर्वक ही ईसाई मत थोपा गया था , इसी कारण वहां की वैदिक परंपरा ईसाइयो के झूठ के नीचे दब कर रह गयी थी ।।
सबसे पहला उदारहण तो यह कि जर्मनी का प्रमुख भाग पर्शिया उर्फ प्रशिया ( प्र-ऋषिय ) ही कहलाता है । प्र-ऋषिय यानी ऋषि का प्रदेश ! ऋषि लोग संस्कृत भाषी होते थे, ओर उनकी संस्कृति सनातन वैदिक हिन्दू धर्म । अतः उन ऋषि पुत्रो का संस्कृत से इतना लगाव होना स्वाभाविक ही है ।
जर्मनी नाम तो उस देश को परायों ने दिया है । जैसे भारत को INDIA नाम परायों ने दिया है। जर्मनी के लोग स्वम् निजी देश को Deutshland ( डाइट्सलेण्ड) कहते है । यह संस्कृत के दैत्य स्थान का नाम है ।
पुराणों में वर्णन है कि ऋषिकुल की एक शाखा ही दैत्य कहलाई । क्यो की वे ऋषि दिती की संतान थे । दैत्य बड़े प्रबल हो गए , अफ्रीका और यूरोप के प्राचीन साम्राज्य में उनके अवशेष अभी भी पाए जाते है । उन्ही दैत्य लोगो के स्वामित्व के कारण जर्मनी डाइट्सलेण्ड यानी दैत्य-प्रदेश कहलाता है ।
हॉलैंड ले लोग जो डच कहलाते है, वे भी दैत्यवंशी ही है । दैत्य का अपभ्रंस डच कैसे होता है, इसके लिए आपको अपने देश भारत आना होगा । एक उदारहण देखे :- उत्तरप्रदेश में एक नगर है भाहराइच , वह अब बन गया है बहराइच ।प्राचीन काल मे इसका नाम था बहुआदित्य ! जिस प्रकार आदित्य शब्द इच बनकर रह गया उसी प्रकार दैत्य शब्द हॉलैंड में डच बनकर रह गया ।
एक मैक्समूलर नाम का आदमी था, वह खुद को आधुनिक संस्कृत का विद्धान कहता था, उसने ऋगवेद का उच्चारण किया । गलत सलत किया, पर किया ! उसका खुद का नाम मोक्ष-मुलर वह खुद को कहता था - मोक्ष तो संस्कृत का ही शब्द है । अब यूरोप में जितने भी नाम मैक्स से है, वह सारे मोक्ष संस्कृत शब्द के ही अपभ्रंस है । जैसे मैक्सवेल आदि आदि ।
स्वस्तिक चिन्ह
साल 1930-32 के समय हिटलर के नेतृत्व में एक नाजी पार्टी का गठन हुआ , उसका चिन्ह स्वस्तिक था । इतना ही नही, जर्मनी के लोग भी इस चिन्ह को स्वस्तिक ही कहते थे, कहते है । यह शब्द संस्कृत का सु-आस्ति-क यानी मंगल करने वाला ऐसा अर्थ है । यह स्वस्तिक जर्मनी में ही नही, अपितु पूरे विश्व मे प्रचलित था । खुद अमेरिका की सेना द्वित्य विश्व युद्ध से पहले अपनी सेना की वर्दी पर स्वस्तिक का चिन्ह लगाती थी , आप यह गूगल कर सकते है । रोमन राजघराने में खाने -पीने के चांदी के बर्तनों ओर स्वस्तिक खुदा हुआ होता था । कुछ लोगो की धारणा यह है कि जर्मनी का स्वस्तिक चिन्ह दाईं ओर मुड़ा हुआ होता है, वस्तुतः वैदिक संस्कृति में दोनो तरह के स्वस्तिक चिन्ह है । तंत्र-मंत्र के शास्त्रो में दोनो तरह के स्वस्तिक चिन्ह पाए जाते है । बस इसमें अल्प सा भेद यह है कि राक्षस लोग वाममार्गी होने के कारण अधिकतर बाएं दण्ड वाला स्वस्तिक उपयोग में लेते है । अरब स्थान के मक्का नगर के काबा के मंदिर में मुसलमान लोग भी दाहिने से बायीं ओर उल्टी परिक्रमा लेते है । इसे अंग्रेजी भाषा मे Anti- Clockwise यानि घड़ी के उल्टे क्रम की परिक्रमा कहते है । अतः अरब में भी दैत्यों का ही शाशन था, यह कह सकते है ।
स्वास्तिक यह अष्ठदिशा निदर्शक चिन्ह है । इतना ही नही, यह गतिमान विश्व का प्रतीक है । अनेक ग्रहों का भृमण , वायु की गति, सागर की लहरें आदि इस विश्व मे जो चेतना या गति है, उस देवी प्रतीक का नाम स्वास्तिक है । यह प्रभावी रूप से प्रकृति को नियंत्रित करता है, राक्षस लोग प्रकृति के विपरीत चलते है । हिटलर का चिन्ह वही राक्षसो वाला टेढ़ा स्वस्तिक था,ओर संयोग देखिये, उसकी हार का कारण उसकी कमजोरी नही, बल्कि यही प्रकृति रही, ठंड में उसकी सेना ने रूस में हथियार डाल दिये ।
जर्मनी में हनुमान
राम का नाम तो वैदिक हिन्दू संस्कृति का गर्व ही बन गया । इसी कारण पूरे विश्व मे रामायण का पाठ होता था । इसलिए जर्मनी में अगर किसी का नाम हनुमान हो, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नही । होम्योपैथी चिकित्साशास्त्र का जनक आधुनिक जर्मनी का Hahneniman नाम का व्यक्ति था । यह हनुमान नाम ही तो है । क्रुशेड के युद्ध मे यूरोप के साथ जर्मनी के शाशको ने भी मुसलमानो के विरुद्ध युद्ध लड़ा, लेकिन उनका किसी का नाम जर्मनी के इतिहास में इतना ख्याति के साथ नही है, जबकि एक गाथा रिचर्ड द लायन नाम की पौराणिक कथा हर कोई जर्मनी का नागरिक जानता है । इसका क्या कारण है ? दरअसल यह गाथा रिचर्ड the लायन ना होकर " रामचन्द्र the लायन है । यानी शेर से ह्रदय वाले भगवान राम की गाथा। लेकिन वामपंथी ईसाइयो ने जान-बूझकर इसी रिचर्ड नाम को क्रुसेड के साथ जोड़ दिया । ओर आने वाली पीढ़ियों को रामायण से वंचित कर दिया । यह एक तरह का घोर षड्यंत्र था ।
सेक्सनी ( Saxony)
प्राचीन जर्मनी के एक नगर का नाम सेक्सनी है । जो कि शक-सेनी का अपभ्रंस रुप है । भारत मे सक्सेना नाम के कई कुल है । शकों ने भारत पर हमला किया, यह बात सत्य है, लेकिन वे लोग हिन्दू विरोधी थे, यह बात निराधार है ।
कुरु
महाभारतीय युद्ध के समय 100 कौरव ओर 5 पांडव कुरु कुल की सन्तान थे । विश्व के अंतिम वैदिक सम्राट होने के नाते उनके सभी सगे संबंधी सर्वत्र शासनाधिकारी थे, एक जर्मन उपनाम Kuhr उसी कुरु नाम का अपभ्रंस है । जर्मनी व्यक्ति को आदरवाचक " श्रीमान " शब्द को Herr कहके संबोधित किया जाता है । इस शब्द का मूल वैदिक परंपरा में मिलता है । जैसे हर गंगे, हरे राम, हरे कृष्ण ऐसा कहा जाता है । अपितु महादेव को हर हर महादेव इस प्रकार दो बार हर इसलिए कहा जाता है, क्यो की वे महादेव होने के कारण अन्य देवो से श्रेणी में एक स्थान ऊपर है ।
जर्मनी भाषा मे किसी प्रदेश के शाशक को Gauleiter कहते है ! जो गौ-लोक-चर शब्द का अपभ्रंस है । यानी किसी प्रदेश में अनेक गौ-शाला पर नियंत्रण रखने वाले को गौलेटर कहा जाता था । जर्मनी में अनेक शिबलिंग भी पाए गए थे, जिसे वहां के पुरातत्व विभाग ने जंगली लोगो के चिन्ह कहकर नजरअंदाज कर दिया ।
बाकी जो है सो है -- सब कुछ था हिन्दुओ का ही, अकर्मठ हम होते गए, राजपाठ लूटते गए ।

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