वीर प्रतापी क्षत्रिय मिहिरभोज
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इस राजपूत की गाथा भले ही हिन्दू स्मृति में आज नही है, केवल नाम भर जानते है, लेकिन इस्लाम पर इस प्रतापी वीर राजपूत ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है ....
यूं कहें तो तो अगर मुसलमान " सुंवर " से घृणा करते है तो इन्ही राजा के कारण , ओर अगर मूंछे नही रखते, तो इन्ही राजा के कारण !! 36 लाख की सेना हर दिशा में 9 लाख सैनिक ! जिसमे महिलाएं भी शामिल थी, आज की इजरायल सुरक्षा नीति उन्ही का अनुसरण कर रही है ।
अब आपको यह समझना चाहिए कि इतिहास को छिन्न भिन्न करने वाला वामपंथ ओर इस्लाम अगर किसी के इतिहास के साथ खिलवाड़ करेगा, तो इसी राजा के इतिहास के साथ करेगा, क्यो की बहुत बुरी यादें जो जुड़ी है ।
राजपूतो इतिहास के लेखकों ने भी इनका इतिहास लिखा है, लेकिन वही विदेशी इतिहास को ध्यान में रखकर .... उसे ही पढ़कर, उसी को आधार मानकर ...
लेकिन भारतीय लोगो का इतिहास को संजोने का एक ओर तरीका है, वह है लोकगीत ओर कथाएं !! , की अगर लिखित इतिहास खत्म भी किसी शक्ति द्वारा कर दिया जाए, तो भी वह कभी खत्म न हो ......
लेकिन बड़ा दुर्भाग्य है, की बड़े से बड़ा इतिहासकार इन बातों की ओर ध्यान नही देता, ओर वही इतिहास छाप देता है, जो विदेशी इतिहासकरो द्वारा मार्गदर्शित होता है !!
मिहिरभोज के जन्म के बारे में केवल यह आप कह सकते है, की यह मुहम्मद के समकालीन थे । महाराज रामभद्र के इस पुत्र की जितनी प्रसंसा की जाए कम है, स्कन्दपुराण, भारतीय अभिलेख ओर मुस्लिम लेखक भी मिहिरभोज की प्रशंसा करते नही थकते !!
वास्तव में मिहिरभोज एक ऐसे प्रतापी राजा ने , जिसने भारत माता का सर गर्व से ऊपर उठा दिया !!
मिहिरभोज का चरित्र और नेतृत्व भारत के महान शाशको में उन्हें अग्रणी स्थान पर लाकर खड़ा करता है । बड़ी बड़ी आंखे, लंबी भुजाएं, विशाल सुडौल काया, प्रिय वचन बोलने वाला, प्रज्ञावान ओर स्वम् ब्राह्मणो जैसा विद्धवान , सभी शास्त्रों का ज्ञाता ....
उनकी महानता यह थी कि प्रतीत होता है, माता लक्ष्मी ने खुद उनके घर निवाश किया था । किन्तु इतना सब होने के बाद भी, उनमें कोई अहंकार या दोष नही था ! उनकी वाणी हमेशा सत्यवादी ओर प्रिय ही थी । वह माता भगवती के परमभक्त तो थे ही, साथ मे विष्णु भगवान के प्रति भी उनकी अपार श्रद्धा थी !! उन्होंने विष्णु जी के नाम पर तो अपनी सेना का नाम " वराह सेना " रखा था । इसी वराह सेना ने भारत पर कुदृष्टि डालने वाले असुरो अर्थात मुसलमानो का घोर विनाश किया था ! भारत ही नही, मुसलमानो को रंगदेते हुए यह तो अरब तक पहुंच गए थे ।
राजा भोज के गद्दी ओर बैठने के समय उनका राज्य संकट की अवस्था मे ही था, भोज के गद्दी पर बैठने से पहले उनके राज्य की स्तिथि कुछ अच्छी नही थी, उनके पिता रामभद्र युद्ध करतर हुए ही वीरगति को प्राप्त हुए थे ।
भारत भ्रमण आये बगदाद के इतिहासकार अलमसूदी ने अपनी किताब मिराजुल - जहाब में इस महाशक्तिशाली , महापराक्रमी सेना का विवरण किया है। उसने इस सेना की संख्या लाखों में बताई है। जो चारो दिशाओं में लाखो की संख्या में रहती है। उनकी सेना का नाम " वराह " सेना है ।
इसी वराह सेना ने अरब पर आक्रमण कर दिया था ! उन दिनों मुहम्मद का उत्पात चरम पर था ! मिहिरभोज को मुसलमानो ने बहुत घृणा थी, वो तो अपने इतिहास में इन्हें असुर लिखवाते है, अरब पर आक्रमण जब किया ! तो उन्होंने पिगम्बर की मूंछे तक उखाड़ ली थी, अपनी जीत की निशानी स्वरूप उन मुछो को वे भारत ले आये, जो आज भी कश्मीर में है । उसी दिन से इस्लाम मे मुछे रखना हराम हो गया, वराह सेना ने यह काम किया था, इसलिए मुसलमान आज तक सुंवर से नफरत करते है।
एक ऐसा राजा जिसने अरब तुर्क आक्रमणकारियों को भागने पर विवश कर दिया और जिसके युग में भारत सोने की चिड़िया कहलाया। मित्रों परिहार क्षत्रिय वंश के नवमीं शताब्दी में सम्राट मिहिरभोज भारत का सबसे महान शासक था। उसका साम्राज्य आकार, व्यवस्था , प्रशासन और नागरिको की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए चक्रवर्ती गुप्त सम्राटो के समकक्ष सर्वोत्कृष्ट था।
भारतीय संस्कृति के शत्रु म्लेछो यानि मुस्लिम तुर्को -अरबो को पराजित ही नहीं किया अपितु उन्हें इतना भयाक्रांत कर दिया था की वे आगे आने वाली एक शताब्दी तक भारत की और आँख उठाकर देखने का भी साहस नहीं कर सके।
चुम्बकीय व्यक्तित्व संपन्न सम्राट मिहिर भोज की बड़ी बड़ी भुजाये एवं विशाल नेत्र लोगों में सहज ही प्रभाव एवं आकर्षण पैदा करते थे। वह महान धार्मिक , प्रबल पराक्रमी , प्रतापी , राजनीति निपुण , महान कूटनीतिज्ञ , उच्च संगठक सुयोग्य प्रशासक , लोककल्याणरंजक तथा भारतीय संस्कृति का निष्ठावान शासक था।
ऐसा राजा जिसका साम्राज्य संसार में सबसे शक्तिशाली था। इनके साम्राज्य में चोर डाकुओ का कोई भय नहीं था। सुदृढ़ व्यवस्था व आर्थिक सम्पन्नता इतनी थी कि विदेशियो ने भारत को सोने की चिड़िया कहा।
ह जानकर अफ़सोस होता है की ऐसे अतुलित शक्ति , शौर्य एवं समानता के धनी मिहिरभोज को भारतीय इतिहास की किताबो में स्थान नहीं मिला।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के शासनकाल में सर्वाधिक अरबी मुस्लिम लेखक भारत भ्रमण के लिए आये और लौटकर उन्होंने भारतीय संस्कृति सभ्यता आध्यात्मिक-दार्शनिक ज्ञान विज्ञानं , आयुर्वेद , सहिष्णु , सार्वभौमिक समरस जीवन दर्शन को अरब जगत सहित यूनान और यूरोप तक प्रचारित किया।
क्या आप जानते हे की सम्राट मिहिरभोज ऐसा शासक था जिसने आधे से अधिक विश्व को अपनी तलवार के जोर पर अधिकृत कर लेने वाले ऐसे अरब तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारियों को भारत की धरती पर पाँव नहीं रखने दिया , उनके सम्मुख सुदृढ़ दीवार बनकर खड़े हो गए। उसकी शक्ति और प्रतिरोध से इतने भयाक्रांत हो गए की उन्हें छिपाने के लिए जगह ढूंढना कठिन हो गया था। ऐसा किसी भारतीय लेखक ने नहीं बल्कि मुस्लिम इतिहासकारो बिलादुरी सलमान एवं अलमसूदी ने लिखा है। ऐसे महान सम्राट मिहिरभोज ने 836 ई से 885 ई तक लगभग 50 वर्षो के सुदीर्घ काल तक शासन किया।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जी का जन्म सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में रामभद्र प्रतिहार की महारानी अप्पा देवी के द्वारा सूर्यदेव की उपासना के प्रतिफल के रूप में हुआ माना जाता है। मिहिरभोज के बारे में इतिहास की पुस्तकों के अलावा बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इनके शासन काल की हमे जानकारी वराह ताम्रशासन पत्र से मालूम पडती है ।
50 वर्ष तक शाशन करने के बाद राजपाठ अपने पुत्र को सौंपकर वे सन्यास ग्रहण कर वन की ओर प्रस्थान कर गए !!