ताजमहल शाहजहां का बनवाया मकबरा है या शिव मंदिर : सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन (CIC) ने सरकार से पूछा
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नई देहली : सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन (CIC) ने सरकार से पूछा है कि ताजमहल मकबरा है या शिव मंदिर ? ताज का इतिहास जानने के लिए एक आरटीआय कमीशन के पास पहुंची है ! इस मुद्दे पर सीआयसी ने कल्चर मिनिस्ट्री की राय मांगी है और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को जवाब दाखिल करने का ऑर्डर दिया। बता दें कि ताजमहल के इतिहास के विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय समेत देश की कई न्यायालय केस खारिज कर चुकी हैं।
एएसआय को ३० अगस्त तक देना होगा जवाब…
• सीआयसी कमिश्नर श्रीधर आचार्यालु के ऑर्डर में कहा- ”कल्चर मिनिस्ट्री ताजमहल के इतिहास के बारे में चले आ रहे विवादों पर लगाम लगाए। साफ करे कि क्या दुनिया के सात अजूबों में शामिल संगमरमर से बनी ये इमारत शाहजहां का बनवाया मकबरा है, या एक राजपूत राजा के द्वारा मुगल शासक को तोहफे में दिया शिवालय (शिव मंदिर) ?”
• आचार्यालु ने कहा है कि मिनिस्ट्री को इस मुद्दे पर अपनी राय देनी चाहिए। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) भी इस मामले में एक पार्टी है। उसे भी जवाब फाइल करना होगा। साथ ही एएसआय को ३० अगस्त से पहले दस्तावेजों की एक कॉपी एप्लीकेंट के साथ शेयर करनी होगी !
ताजमहल के बारे में ये सवाल पूछे
• ताज के इतिहास के बारे में किए जा रहे दावों की सच्चाई जानने के लिए बीकेएसआर अय्यंगर ने एएसआय के पास आरटीआय फाइल की थी। इसमें उन्होंने पूछा – ”क्या आगरा में बना स्मारक ताजमहल है या तेजो महालय ? कई लोग दावा करते हैं कि इसका असली नाम तेजो महालय है। इसे शाहजहां ने नहीं बनवाया बल्कि राजपूत राजा मानसिंह ने मुगल शासक को तोहफे में दिया !”
• आरटीआय में १७वीं सदी में इमारत को बनाने की डिटेल भी चाही गई। जैसे- इसमें कितने कमरे हैं, कितने सीक्रेट रखे गए हैं और कितने सिक्युरिटी के लिहाज से बंद किए हैं। अय्यंगर ने सबूतों के साथ एएसआय से जानकारी मांगी। उन्हें जवाब मिला कि ऐसा कोई सबूत और रिकॉर्ड मौजूद नहीं है !
बंद कमरे खुलने से नया इतिहास मिलेगा
• आचार्यालु ने आगे कहा, ”इस आरटीआय के जवाब देने के लिए एएसआय को ताजमहल के इतिहास की रिसर्च और इन्वेस्टिगेशन करना होगा। इसके बंद कमरों को खोलने और खुदाई से कई छिपी हुई बातें सामने आएंगी और ताजमहल का नया इतिहास सामने आ सकता है !”
• ”ताजमहल को एक संरक्षित स्मारक घोषित करने से पहले कई लोगों ने अपनी आपत्तियां दर्ज कराई थीं और इमारत का नाम तेजो महालय करने की मांग उठी थी !”
• ”एएसआय एप्लीकेंट को बताए कि क्या यहां पहले कभी खुदाई हुई और इसमें क्या मिला ? हालांकि, खुदाई का फैसला संबंधित अथॉरिटी के पास है। कमीशन बंद कमरों को खोलने और खुदाई के निर्देश नहीं दे सकता है !”
इतिहासकार ने क्या दावा किया ?
• आचार्यालु के अनुसार, इतिहासकार पु.ना. ओक ने अपने ग्रंथ ‘Taj Mahal : The True Story’ में लिखा है कि ताजमहल वास्तव में एक शिव मंदिर है, जिसे राजपूत राजा ने बनवाया था। उन्होंने बाद में इसे शाहजहां को दे दिया।
• इतिहासकार के नाते ओक १७ साल पहले इसे शिव मंदिर घोषित करने की मांग लेकर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे। तब न्यायालय ने कहा था कि इस मामले पर फैसला आपको ही करना होगा !
• इसके बाद फरवरी, २००५ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक पिटीशन फाइल हुई। इसमें ताज को मुगलकालीन बतानेवाले एएसआय के नोटिस को रद्द करने की मांग की गई। तब उच्च न्यायालय की बेंच ने इसे तथ्यों के विवाद का मुद्दा बताकर खारिज कर दिया था !
'ताजमहल' वास्तु मुसलमानोंकी नहीं, अपितु वह मूलतः हिंदुओंकी है । वहां इससे पूर्र्व भगवान शिवजीका मंदिर था, यह इतिहास सूर्यप्रकाशके जितना ही स्पष्ट है । मुसलमानोंने इस वास्तुको ताजमहल बनाया । ताजमहल इससे पूर्र्व शिवालय होनेका प्रमाण पुरातत्व विभागके अधिकारी, अन्य पुरातत्वतज्ञ, इतिहासके अभ्यासक तथा देशविदेशके तज्ञ बताते हैं । मुसलमान आक्रमणकारियोंकी दैनिकीमें (डायरी) भी उन्होंने कहा है कि ताजमहल हिंदुओंकी वास्तु है । तब भी मुसलमान इस वास्तुपर अपना अधिकार जताते हैं । शिवालयके विषयमें सरकारके पास सैकडों प्रमाण धूल खाते पडे हैं । सरकार इसपर कुछ नहीं करेगी । इसलिए अब अपनी हथियाई गई वास्तु वापस प्राप्त करने हेतु यथाशक्ति प्रयास करना ही हिंदुओंका धर्मकर्तव्य है । ऐसी वास्तुएं वापस प्राप्त करने हेतु एवं हिंदुओंकी वास्तुओंकी रक्षाके लिए ‘हिंदु राष्ट्र’ अनिवार्य है !
मुसलमान आक्रमणकारियोंने भारतके केवल गांव एवं नगरोंके ही नामोंमें परिवर्तन नहीं किया, अपितु वहांकी विशाल वास्तुओंको नियंत्रणमें लेकर एवं उसमें मनचाहा परिवर्तन कर निस्संकोच रूपसे मुसलमानोंके नाम दिए । मूलतः मुसलमानोंको इतनी विशाल एवं सुंदर वास्तु बनानेका ज्ञान ही नहीं था । परंतु हिंदुओंने इस्लाम पंथकी स्थापनासे पूर्व ही अजिंटा तथा वेरूलके साथ अनेक विशाल मंदिरोंका निर्माणकार्य किया था । मुसलमान आक्रमणकारियोंको केवल भारतकी वास्तुकलाके सुंदर नमुने उद्ध्वस्त करना इतना ही ज्ञात था । गजनीद्वारा अनेक बार उद्ध्वस्त श्री सोमनाथ मंदिरसे लेकर तो आजकलमें अफगानिणस्तानमें उद्ध्वस्त बामयानकी विशाल बुद्धमूर्तितकका इतिहास मुसलमान आक्रमणकारियोंकी विध्वंसक मानसिकताके प्रमाण है ।
अंग्रेज सरकारद्वारा भी निश्चित रूपसे विध्वंस !
मुसलमान आक्रमणकर्ताओेंके पश्चात आए अंग्रेज सरकारको भारतीय संस्कृतिके विषयमें तनिक भी प्रेम न रहनेके कारण उन्होंने मुसलमान आक्रमणकर्ताओंका ही अनुकरण किया ।
आक्रमणकर्ताओंकी दैनिकीमें ताजमहलके विषयमें सत्य !
आग्राकी ताजमहल वास्तुकी भी कहानी इसी प्रकारकी है । डॉ. राधेश्याम ब्रह्मचारीने ताजमहलका तथाकथित निर्माता शहाजहानके ही कार्यकालमें लिखे गए दस्तावेजोंका संदर्भ लेकर ताजमहलका इतिहास तपासकर देखा है । अकबरके समान शहाजहानने भी बादशहानामा ऐतिहासिक अभिलेखमें अपना चरित्र एवं कार्यकालका इतिहास लिखकर रखा था । अब्दुल हमीद लाहोरीने अरेबिक भाषामें बादशहानामा लिखा था, जो एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाल ग्रंथालयमें आज भीr उपलब्ध है । इस बादशहानामाके पृष्ठ क्रमांक ४०२ एवं ४०३ के भागमें ताजमहल वास्तुका इतिहास छिपा हुआ है । इस भागका स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है ।
'शुक्रवार दिनांक १५ माह जमदिउलवलको शहाजहानकी पत्नी मुमताजुल जामानिका पार्थिव बुरहानपुरसे आग्रामें (उस समयका अकबराबाद) लाया गया । यहांके राजा मानसिंहके महलके रूपमें पहचाने जानेवाले अट्टालिकामें गाडा गया । यह अट्टालिका राजा मानसिंहके नाती राजा जयसिंहके मालिकीकी थी । उन्होंने यह अट्टालिका शहाजहानको देना स्वीकार किया । इसके स्थानपर राजा जयसिंहको शरीफाबादकी जहागिरी दी गई । यहां गाडे गए महारानीका विश्वको दर्शन न होने हेतु इस भवनका रूपांतर दर्गामें किया गया ।
मुमताजुुलकी मृत्यु !
शहाजहानकी पत्नीका मूल नाम था अर्जुमंद बानू । वह १८ वर्षोंतक शहाजहानकी रानी थी । इस कालावधिमें उसे १४ अपत्य हुए । बरहानपुरमें अंतिम जजगीमें उसकी मृत्यु हो गई । उसका शव वहींपर अस्थायी रूपसे गाडा गया ।
ताजमहल शिवालय होनेका सरकारी प्रमाण !
ताजमहलसे ४ कि.मी. दूरीपर आग्रा नगरमें बटेश्वर नामक बस्ती थी । वर्ष १९०० में पुरातन सर्वेक्षण विभागके संचालक जनरल कनिंघमद्वारा किए गए उत्खननमें वहां संस्कृतमें ३४ श्लोकमें मुंज बटेश्वर आदेश नामक पोथा पाया गया, जो लक्ष्मणपुरीके संग्रहालयमें संरक्षित है । इसमें श्लोक क्रमांक २५, २६ एवं ३६ महत्त्वपूर्ण हैं । इनका स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है ।
'राजाने एक संगमरवरी मंदिरका निर्माणकार्य किया । यह भगवान विष्णुका है । राजाने दूसरा शिवका संगमरवरी मंदिरका निर्माण कार्य किया । ' यह अभिलेख विक्रम संवत १२१२ माह आश्विन शुद्ध पंचमी, शुक्रवारको लिखा गया । (वर्तमान समयमें विक्रम संवत २०७० चालू है । अर्थात शिवालयका निर्माणकार्य कर लगभग ८५० वर्षोंकी कालावधि बीत गई है ।) (यह कालावधि लेख लिखनेके समयका अर्थात वर्ष १९०० के संदर्भके अनुसार है – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
शिवालयके प्रमाणको पुरातत्व शास्त्रज्ञोंका समर्थन !
१. प्रख्यात पुरातत्वशास्त्रज्ञ डी.जे. कालेने भी उपरोक्त दस्तावेजको समर्थन दिया है । उनके संशोधनके अनुसार राजा परमार्दीदेवने २ विशाल संगमरवरी मंदिरोंका निर्माणकार्य किया, जिसमें एक श्रीविष्णुका तो दूसरा भगवान शिवजीका था । कुछ समय पश्चात मुसलमान आक्रमणकर्ताओंने इन मंदिरोंका पावित्र्य भंग किया । इस घटनासे भयभीत होकर एक व्यक्तिने दस्तावेजको भूमिमें गाडकर रखा होगा । मंदिरोंकी पवित्रताका भंग होनेके कारण उनका धार्मिक उपयोग बंद हो गया । इसीलिए बादशहानामाके लेखक अब्दुल हमीद लाहोरीने मंदिरके स्थानपर महल ऐसा उल्लेख किया होगा ।
२. प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदारके अनुसार चंद्रात्रेय (चंदेल) राजा परमार्दिदेवका दूसरा नाम था परमल एवं उसके राज्यका नाम था बुंदेलखंड । आज आग्रामें दो संगमरवरी प्रासाद हैं, जिसमें एक नूरजहांके पिताकी समाधि (श्रीविष्णु मंदिर) है एवं दूसरा (शिवमंदिर) ताजमहल है ।
ताजमहल हिंदुओंका शिवालय होनेके और भी स्पष्ट प्रमाण !
प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदारके मतका समर्थन करनेवाले प्रमाण आगे दिए हैं ।
१. ताजमहलके प्रमुख गुंबजके कलशपर त्रिशूल है, जो शिवशस्त्रके रूपमें प्रचलित है ।
२. मुख्य गुंबजके उपरके छतपर एक संकल लटक रही है । वर्तमानमें इस संकलका कोई उपयोग नहीं होता; परंतु मुसलमानोंके आक्रमणसे पूर्व इस संकलको एक पात्र लगाया जाता था, जिसके माध्यमसे शिवलिंगपर अभिषेक होता था ।
३. अंदर ही २ मंजिलका ताजमहल है । वास्तव समाधि एवं रिक्त समाधि नीचेकी मंजिलपर है, जबकि २ रिक्त कबरें प्रथम मंजिलपर हैं । २ मंजिलवाले शिवालय उज्जैन एवं अन्य स्थानपर भी पाए जाते हैं ।
४. मुसलमानोंकी किसी भी वास्तुमें परिक्रमा मार्ग नहीं रहता; परंतु ताजमहलमें परिक्रमा मार्ग उपलब्ध है ।
५. फ्रांस देशीय प्रवासी तावेर्नियारने लिखकर रखा है कि इस मंदिरके परिसरमें बाजार भरता था । ऐसी प्रथा केवल हिंदु मंदिरोंमें ही पाई जाती है । मुसलमानोंके प्रार्थनास्थलोंमें ऐसे बाजार नहीं भरते ।
ताजमहल शिवालय होनेकी बात आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगद्वारा भी सिद्ध
वर्ष १९७३ में न्यूयार्कके प्रैट संस्थाके प्राध्यापक मर्विन मिल्सद्वारा ताजमहलके दक्षिणमें स्थित लकडीके दरवाजेका एक टुकडा अमेरिकामें ले जाया गया । उसे ब्रुकलिन महाविद्यालयके संचालक डॉ. विलियम्सको देकर उस टुकडेकी आयु कार्बन-१४ प्रयोग पद्धतिसे सिद्ध करनेको कहा गया । उस समय वह लकडा ६१० वर्ष (अल्प-अधिक ३९ वर्ष) आयुका निष्पन्न हुआ । इस प्रकारसे ताजमहल वास्तु शहाजहानसे पूर्व कितने वर्षोंसे अस्तित्वमें थी यह सिद्ध होता है ।
शिवालय (अर्थात तेजोमहालय) ८४८ वर्ष पुराना !
यहांके मंदिरमें स्थित शिवलिंगको 'तेजोलिंग' एवं मंदिरको तेजोमहालय कहा जाता था । यह भगवान शिवका मंदिर अग्रेश्वर नामसे प्रसिद्ध था । इससे ही इस नगरको आग्रा नाम पडा । मुंज बटेश्वर आदेशके अनुसार यह मंदिर ८४८ वर्ष पुराना है । इसका ३५० वां स्मृतिदिन मनाना अत्यंत हास्यजनक है ।
(संदर्भ : साप्ताहिक ऑर्गनायजर, २८.११.२००४)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात