मल्हार राव होलकर – पेशवा के साथ दिल्ली का लाल किला जीता था
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गुरुग्राम : बचपन में पशु चराने वाले मल्हारराव को उनके साहस और शौर्य के चलते बाजीराव पेशवा ने 11 महलों की जागीर दी थी। वहीं मुगलों ने उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि से नवाजा था। अपने वैभव के लिए विश्वभर में चर्चित इंदौर के होलकर साम्राज्य के संस्थापक मल्हार राव होलकर एक सामान्य चरवाहे परिवार में जन्मे थे।
मल्हार राव होलकर का इतिहास
– मल्हार राव होलकर का जन्म 16 मार्च 1693 को महाराष्ट्र के होल गांव में हुआ था। उनके पिता खंडूजी होलकर चरवाहे थे। 14 साल की उम्र में मल्हारराव मराठा सेना में भर्ती हो गए थे। अपनी बहादुरी से उन्होंने सेना में एक खास जगह बना ली।
– 41 युद्ध जीतने वाले बाजीराव पेशवा उनकी बहादुरी के कायल थे। पेशवा ने 5 हजार सैनिकों का नायक बनाकर उन्हें मालवा का सूबेदार नियुक्त किया था। उन्हें 11 महलों की जागीर भी सौंपी गई थी।
– 1734 में मल्हारराव ने इंदौर में एक शिविर की स्थापना की थी। बाद में उन्होंने इंदौर सहित मालवा का राज-काज संभालकर होलकर राजवंश की स्थापना की।
पेशवा के साथ बोला था दिल्ली पर धावा
– 1730 में बाजीराव पेशवा ने एक विशाल सेना के साथ दिल्ली पर धावा बोला था। बाजीराव ने अपनी सेना को दो टुकड़ियों में बांटकर एक की कमान मल्हारराव को सौंपी थी। मराठा सैनिकों से डरकर तत्कालीन मुगल शासक लाल किले में जाकर छिप गया था। बाद में मुगल शासक ने मल्हाराव को महाराजधिराज राजश्वेर अालीजा बहादुर की उपाधि से नवाजा था।
– उनकी मृत्यु के बाद उनकी बहू अहिल्याबाई होलकर ने राजगद्दी संभाली थी। अपने पुण्य प्रताप और कूटनीति के चलते अहिल्याबाई का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है।