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Yatharth Sandesh
30 Oct, 2017(Hindi)
History

ताजमहल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण फैक्ट्स

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।#ताजमहल_के_मकबरा_होने_का_भांडा_फोड़
ताजमहल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण फैक्ट्स

1-ताजमहल का नाम औरंगजेब तक के किसी भी दरबारी दस्तावेज में कही नही मिलता है।
2- यह अगर इस्लामी कब्र है तो इसे महल कहने का क्या औचित्य।
3- सामान्य धारणा है कि इसका नाम शाहजहां की पत्नी मुमताज महल के नाम पर था। पर उसका नाम तो मुमताज उलू जमानी था।
4- चलो माना उसका नाम मुमताज महल था तो उस महिला के नाम के आगे के दो अक्षर उड़ाकर किसी इमारत का नाम कैसे रखा जा सकता है। यदि मुमताज के नाम पर होता तो इमारत का नाम मुमताज महल होता न
5- शाहजहां के समय भारत में आये हुए पर्यटको ने ताजमहल का उल्लेख ताज ऐ महल नाम से किया है जो तेजो महालय का अपभ्रंस है और शिव मंदिर का सूचक भी।
6-ताज महल दोनों शब्दों को आपस में नही जोड़ा जा सकता क्योंकि महल संस्कृत शब्द है।
7-यदि ताजमहल मकबरा होता तो उसे महल न कहा जाता क्योंकि महल में तो सजीव व्यक्ति रहते है न।
8- तेजो महालय में अग्रनगर के शिव को स्थापित किया गया है अग्रनगर अर्थात आगरा।
9-कब्रिस्तान में जुते पहनना आवश्यक होता है तथा मंदिर में जुते उतारना आवश्यक होता है। अगर ताजमहल मकबरा होता तो यहाँ जूते उतरने की परंपरा क्यों?
10- संगमर्मरी जाली के शिखर पर बने कलशों की कुल संख्या 108 है जो पवित्र हिन्दू परम्परा है।
11-ताजमहल के उपरली किनारे पर स्थित नाग नागिन के चित्र जड़े होने से लगता है कि यह जरूर मंदिर होगा मकबरे में नाग नागिन का क्या काम ?
12- 80% से ज़्यादा संगमरमर की कटाई शाहजहां के जन्म के पहले की है।
13- आगरा में ज़्यादातर जाट रहे थे जो शिव जी को तेज श्री कहकर बुलाते हैं।
14- शाहजहांनामा में एक जगह 403 पृष्ठ पर लिखा गया है कि राजा इमारत के आलिशान मुमताज को दफनाने के लिए जयपुर के महाराज जय सिंह से छीन लिया गया।
15- प्राप्त दस्तावेजों में मुमताज का नाम मुमताज उलू जमानी कहा गया है ।
16- सन 1652 में औरंगजेब शाजहाँ को पत्र लिखता है कि मुमताज की कब्र वाली इमारत में दरार पड़ गयी है जिससे कब्र में पानी टपकता है और शाजहाँ को स्वयं के खर्चे से मरम्मत की आज्ञा देता है।
17-दिसम्बर 17 सन 1633 शाहजहां जयपुर नरेश को धमकी भरे पत्र लिखता है जिसमे मंदिर की मांग की गयी है। वे पत्र आज भी जयपुर संग्रहालय में आज भी गुप्त रूप में रखे हुए हैं।
18- अभी तक राजस्थान के बीकानेर अभिलेखागार में तीन पत्र अभी भी सुरक्षित रखे हुए हैं।उनमें एक चौथा पत्र भी है जिसमे तेजोमहालय हड़पने के पश्चात मुमताज दफनाने के लिए और संगमरमर की डिमांड की गयी।पर जय सिंह ने कुछभी नही भेजा।
19- द लायट नाम का एक अफसर शाहजहां के गद्दी पर बैठने से पूर्व भारतआया उसने उल्लेख किया है कि आगरा के लाल किले से लगभग एक मील की दुरी पर मानसिंह भवन था।
20-तत्कालीन फ्रेंच पर्यटक बनिये ने लिखा कि ताजमहल के तहखाने मेंचकाचोंध करने वाला दृश्य था परन्तु उस कक्ष में मुसलमानों के अतिरिक्त सब का प्रवेश वर्जित था उसे भी वहांसे भगा दिया गया। इससे साफ स्पष्ट होता है कि वहां कुछ तो ऐसी वस्तु आदि होंगी जो अगर सार्वजनिक की गयी तो ताजमहल का रहस्य खुल जायेगा।बनिये ने वहां पर मयूर सिंहासन, सोने के शेर, चांदी के बर्तन आदि देखे और ऊपर अष्टकोण कक्ष में शिवलिंग पर पानी टपकने वाला सुवर्ण षट और संगमरमरी जालियों में जवाहरात थे। इतनी सारी सम्पति हड़पने के लिए ही तो शाहजहां ने मुमताज को दफनाने की दुष्टता की।
21- जे ए मंडेलसलो नामक पर्यटक मुमताज की मृत्यु के 7 वर्ष बाद आगरा आया उसने खुद का एक संस्मरण भी लिखा, पर उसमे ताजमहल का कोई जिक्र भी नही था। अगर ताजमहल का निर्माण सच में 22 साल में 20 हज़ारमजदूरों द्वारा हुआ था तो इस पर्यटक ने अपने संस्मरन voyages andtravels into east indies में इतने विशाल निर्माण के बारे क्यों कुछ नही लिखा।
22-ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने का साक्ष्य देने वाला काले पत्थर पर उत्कीर्ण एक संस्कृत शिलालेख लखनऊ के वास्तु संग्रहालय में उपरली मंदिर पर रखा हुआ है जो कि सन 1155 का है। जिसमे राजा परमादिरदेव के मंत्री सलक्षण द्वारा यह कहा गया है कि स्फटिक जैसा शुभ्र इंद्रमोलेश्वर(शंकर) का मंदिर बनाया गया है वह इतना सुंदर है कि शिव को कैलाश लौटने की इच्छा नही हो रहीवह मंदिर आश्विन शुक्ल पंचमी रविवार को बनकर तैयार हुआ है। एक ऐतेहासिक शिलालेख में यह भी उल्लेख है कि काले पत्थरों का मंडप इस मंदिर में था। और ऊपर वाला शिलालेख भी इसी मंडप में विधमान रहा होगा।
23- शाहजहां की हेरा फेरी के बारे में सन 1874 में प्रकाशित हुई पुस्तक पुरातत्व खाते (आर्कियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया) में चौथे खण्ड के 216-217 पेज पर लिखा है कि आगरा के वास्तु संग्रहालय में जो चोखुटा काले रंग का स्तम्भ खड़ा है उसी की जोड़ी का दूसरा स्तम्भ ताजमहल के उद्यान में शिखर तथा चबूतरे सहित विद्धमान थे। इससे स्पष्ट होता है कि जो शिलालेख लखनउ में है वह भी इसी उद्यान में रहाहोगा।
24- ताजमहल प्रांगण में जहाँ टिकट निकाली जाती हैं उस बड़े चौक को हाथी चौक कहा जाता है, शायद चौक के दोनों ओर वहां गज प्रतिमाएं रही होंगी जो शाहजहां या बाद के किसी शाशक ने नष्ट करा दी।
25-थॉमस ट्विनिंग नामक लेखक की पुस्तक travels in india a hundredyears ago नामक पुस्तक में पेज 169 में उल्लेख है कि 1794 में ट्विंनिग पालकी से उतरा प्रांगण में और वहां से थोडागे चलने पर हाथी की प्रतिमा वाला चौक था।26-ताजमहल के गुम्बद के ऊपर कलश की आकृति है जो हिन्दू मंदिरों के भवन के ऊपर हमेशा होती है यह किसी मकबरे के ऊपर होना नामुमकिन है।
27- संगमर्मर पर जो आयते जड़ी हुई है उन्हें गौर से देखने और साफ़ पताचलता है कि इन्हें इन पत्थरोंपर बाद में जड़ा गया है।28-एक वैज्ञानिक मर्विन मिल्स जिसने कार्बन-14 विधि से ताजमहल की आयु की जांच कराई न्यूयॉर्क में जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह इमारत शाजहाँ के जन्म से सैंकड़ो वर्ष पूर्व बनायी हुई है।
29-ताजमहल के शिखर पर चार छत्र वीच में गुम्बद यह हिन्दू पंचरत्न की कल्पना है जो हिन्दू मंदिर में ही होती है।
30-ताजमहल के चारों तरफ खड़े स्तम्भ रात में प्रकाश स्तम्भ तथा दिन में मन्दिर की पहरेदारी के काम आते थे।
31-ताजमहल का अष्टकोणि आकार हम हिन्दुओ की दस दिशाएं बोध कराता है यह भी हिन्दू परम्परा का हिस्सा है।आपको जानकर हैरत होगी कि जामा मस्द्विज भी इसी प्रकार अष्टकोणि आकार में है अतः यह भी एक हिन्दू मंदिर ही था पहले।
32-ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश है वह त्रिशूल के आकार का पूर्ण कुम्भ है।उसके मध्य दंड के शिखर और नारियल की आकृति बनी हुई है। यह कलश सिर्फ हिन्दू या बौद्ध मंदिरों के ऊपर दिखाई देते हैं। गौर से देखना कभी ताजमहल के गुम्बद पर।
33-कलश पर ऊपर से इस्लामी नाम अल्लाह आदि गाढ़ दिया गया है जो वह गौरसे देखने पर अलग ही प्रतीत होता है ऐसा लगता है किसी ने फेरबदल के उद्देश्यसे ही ऐसा किया होगा।34-संगमर्मरी ताजमहल के पूर्व तथा पश्चिम में एक जैसे दो भवन है जिन में से एक को शाहजहां काल से मुसलमान मस्द्विज कहते आये हैं पर दूसरी को नही बल्कि आकार प्रकार दोनों इमारतों का एक सा ही है।पर प्रयोग अलग क्यों। वास्तव में दोनों भवन तेजोमहालय की धर्मशाला हीहैं।
35-पश्चिम में तथाकथित मस्द्विज से 50 गज की दुरी पर एक नक्कारखाना( जैसा मंदिरों में होता है जिसमे वाद्ययंत्र रखे एवं बजाए जाते है) है, यदि ताजमहल कब्र होती तो उसमें नक्कारखाने का क्या काम ??
36- केंद्रीय अष्टकोणि कक्ष जहाँ मुमताज की नकली कब्र है वहां जाकर आप पाएंगे क़ि वहां शिवलिंग जैसा कुछ था और आस पास की दीवारों और ॐ आकार के पुष्प की डिजाइन है।37-कब्र के स्थान पर कभी शिवलिंग था जिसके पञ्च परिक्रमा मार्ग हैं1-संगमर्मरी जाली के अंदर से
2-जाली के बाहर से
3-उसी कक्ष के बाहर से
4-संगमर्मरी चबूतरे से
5-लाल पत्थर के आंगन से
38- शिवलिंग के चारों ओर पहले सोने के खम्बे थे जिसका उल्लेख पीटरमन्दि ने अपनी संस्मरन में किया पर अब वह नही है तथा उस जगह से खम्बे हटवाकर सुराख़ भरवाने के निशान भी साफ़ दिखाई पड़ते हैं।
40-कब्र के ऊपर गुम्बद के मध्य एक अष्टधातु की जंजीर लटक रही है इसका मकबरे में क्या काम ,, शिवलिंग का जल सींचने वाला स्वर्ण कलश इसी जंजीर से लटक रहा था। पर जब स्वर्ण कलश को शाहजहां ने हटा दिया तो यह जंजीर भद्दी दिखने लगी जिसकारण इस पर लार्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दिया।
41-शिवलिंग पर जो कलश द्वारा पानी टपकता था वह कलश हड़पने के बाद बन्द हो गया पर बूंद टपकने की बात लोगों में बनी रही अतः समय बीतते बीतते शाजहाँ का आसूं टपकने की बात अनजाने में चल पड़ी।
42-पता नही लोग इस बात पर विश्वास भी कैसे मान लेते हैं शाजहाँ कोई साधु , महांपुरुस तो नही था जिस कारण उसकी आत्मा भटकेगी। वह तो एक क्रूर और अत्याचारी शाशक था और रंगीले मिजाज का भी
43-एक और चुतियापा यह फैलाया जाता है कि ताजमहल बनाने के बाद शाहजहां ने सब कारीगरों के हाथ काट दिए थे, यह बताइये जब कोई कारीगरइतनी खूबसूरत रचना बनायेगा तो उसका सम्मान होगा या हाथ काट दिए जाएंगे।बल्कि सच तो यह है कि शाहजहां इतना कंजूस था कि वह ताजमहल में अपना एक कौड़ी तक खर्च नही करना चाहता था।पहले पत्रों के बारे में बता ही चूका हूँशाहजहां के सैनिक आगरा में घूम रहे गरीब नागरीको को तेजोमहालय में लाकर पटक देते थे ,उनसे मुफ्त में काम करवाया जाता था बस दाल रोटी दी जाती थी।44-मजदूरों को फि जाने वाली दाल रोटी भी अधिकारियों द्वारा हड़प ली जाती थी जैसे आजकल हर सरकारी विभाग में होता हैजिस कारण मजदूर भाग भी जाते थे इसलिए ताजमहल का काम 22 वर्ष तक धीरे धीरे चला।फिर बंद कर दिया गया।
45-ताजमहल के आंगन में एक शिला को हटवाकर देखा गया जो कि खोखली सी लग रही थी वहां शिला हटाने पर पुरातत्ववेता आर के वर्मा जी को एक जीना दिखा जिस से सैंकड़ो कमरों के लिए रास्ता जा रहा था पर वहां एक नाग नागिन का जोड़ा फन उठाकर बैठा था जिस कारण वर्माजी लौट आये।
46-मस्द्विज कहलाने वाली इमारत के साथ जो सात मंजिला कुँआ है उसमे जलस्तर वाली मंजिल में खजाना रखा जाता था। यह वैदिक छत्रिय परम्परा थी।
47- यदि शाहजहां ने सच में मुमताज के लिए यह बनवाया होता तो उसके अभिलेखों में बनवाने , दफनाने की तारीख अवश्य होती क्योंकि ताजमहल इतना विशाल बना तो दफनाया भी राजसी ठाट बाट द्वारा गया होगा।
48-शाहजहां के जनान खाने में मुमताज की औकात 5000/1 इससे ज़्यादा नही थी। अगर शाजहाँ ने सच में बनवाया होता तो ऐसे बहुत से ताजमहल होने चाहिए।
49- मुताज्महल को अगर शाहजहां की बीवी माँने तो वह चौदहवी बीवी थी।मुमताज के मरने के बाद शाहजहां ने उसकी बेटी को रखैल बना लिया।
50-अगर शाहजहां को मुमताज से सच्चा प्रेम था तो उसकी कोई कथा अवश्यहोगी जैसे तुलसीदास की पत्नी विरह , कालिदास की ज्ञान प्राप्ति आदि

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