थिएटर में राष्ट्रगान न गानेवाले राष्ट्रविरोधी नहीं : उच्चतम न्यायालय
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नई देहली : राष्ट्रगान मामले की सुनवाई के दौरान सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि, देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने की आवश्कता नहीं है ! न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा कि, वह सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को नियंत्रित करने के लिए नियमों में संशोधन पर विचार करे !
देश की शीर्ष न्यायालय ने टिप्पणी की कि, कोई राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता तो यह नहीं माना जा सकता कि, वह कम देशभक्त है। देशभक्ति के लिए बांह में पट्टा लगाने की आवश्कता नहीं है। न्यायालय ने सरकार से कहा कि, अगर उसे लगता है कि, राष्ट्रगान के समय सभी खड़े रहें तो वह कानून बना सकती है। सरकार राष्ट्रीय ध्वज संबंधित कानून में स्वयं बदलाव क्यों नहीं करती ?, हर काम न्यायालय के पाले में क्यों डालती है ? उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि, राष्ट्रगान नहीं गाने को राष्ट्रविरोधी नहीं कहा जा सकता। देशभक्ति दिखाने के लिए राष्ट्रगान गाना जरूरी नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि क्या हर वक्त बांहें उठाकर राष्ट्रीयता की दुहाई दी जा सकती है ? मॉरल पुलिसिंग (नैतिकता का पाठ) को बंद किया जाना जरूरी है !
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह सिनेमाहॉल में राष्ट्रगान बजाने को लेकर एक आदेश पारित करे ! इस दौरान उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश से प्रभावित हुए बगैर आदेश दे। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि भारत बहुलता का देश है। ऐसे में राष्ट्रगान का बजाया जाना एकात्मकता का बोध दिलाएगा। न्यायालय ने केंद्र से कहा कि आप क्यों नहीं नियम में बदलाव करते, ये चीजें कोर्ट पर क्यों छोड़ते हैं ?
३० नवंबर २०१६ को दिए आदेश में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि पूरे देश में सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाए और इस दौरान सिनेमा हॉल में मौजूद तमाम लोग खड़े होंगे ! राष्ट्रगान के सम्मान में तमाम लोगों को खड़ा होना होगा। कोर्ट ने ये भी निर्देश दिया है कि जब फिल्म हॉल में राष्ट्रगान बजाया जाए तब इस दौरान राष्ट्रीय झंडा परदे पर दिखाया जाए !
स्त्रोत : नवभारत टाईम्स