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Yatharth Sandesh
09 Nov, 2017(Hindi)
History

9नवम्बर- बलिदान दिवस भाई मतिदास,

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9नवम्बर- बलिदान दिवस भाई मतिदास, जिन्हें आरे से दो हिस्सों में चीर दिया क्रूर मुगलों ने, पर वो नहीं बने मुसलमान,,,ऐसे महापुरुषों को कोटि कोटि नमन।

वामपंथी इतिहासकारो की क्या मज़बूरी रही होगी, की उन्होंने असली त्याग और बलिदान की सच्ची बातो का जिक्र इतिहास की किताबो में करना ज़रूरी नहीं समझा ?.मुग़ल काल के इतने ऐसे किस्से हैं, जिन्हें आप सुनकर दंग रह जायेंगे। बलिदान के कई ऐसे किस्से हैं जिन्हे आप सुनकर दंग रह जायेंगे। बलिदान के कई ऐसे किस्से हैं जिन्हें उंगलियों पर गिनाया जा सकता है। औरंगजेब के शासन में तो हिंदुओं पर ऐसे-ऐसे कहर धाए गए कि उन्हें सुनकर आसमान थर्राने लगे। जिहाद के नाम पर हिंदुओं को बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया जाता था।

औरंगजेब की सेना को सरे राह जो भी हिंदु या सिक्ख मिलता उसे हिंदुत्व छोडऩे के लिए बाध्य किया जाता, इनकार करने पर उसे यातनाएं देनी कि उन्हें पूरी छूट थी। उन्हें तो यह भी हक़ था कि इंकार करने पर वह उसका सिर कलम कर दे। धर्म परिवर्तन के लिए हिंदुओं को इतिहास में कई बकरों की तरह काटा गया है।

गुरु तेगबहादुर के पास जब कश्मीर से हिन्दू औरंगजेब के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करने आये, तो वे उससे मिलने दिल्ली चल दिये. मार्ग में आगरा में ही उनके साथ भाई मतिदास, भाई सतिदास तथा भाई दयाला को बन्दी बना लिया गया. इनमें से पहले दो सगे भाई थे. औरंगजेब चाहता था कि गुरुजी मुसलमान बन जायें. उन्हें डराने के लिए इन तीनों को तड़पा-तड़पा कर मारा गया; पर गुरुजी विचलित नहीं हुए. औरंगजेब ने सबसे पहले 9 नवम्बर, 1675 को भाई मतिदास को आरे से दो भागों में चीरने को कहा.


लकड़ी के दो बड़े तख्तों में जकड़कर उनके सिर पर आरा चलाया जाने लगा. जब आरा दो तीन इ॰च तक सिर में धंस गया, तो काजी ने उनसे कहा – मतिदास, अब भी इस्लाम स्वीकार कर ले. शाही जर्राह तेरे घाव ठीक कर देगा. तुझे दरबार में ऊँचा पद दिया जाएगा और तेरे 5 निकाह कर दिए जायेंगे .. इतने घाव के बाद भी भाई मतिदास ने व्यंग्यपूर्वक पूछा – काजी, यदि मैं इस्लाम मान लूँ, तो क्या मेरी कभी मृत्यु नहीं होगी ? काजी ने कहा कि यह कैसे सम्भव है. जो धरती पर आया है, उसे मरना तो है ही. भाई जी ने हँसकर कहा – यदि तुम्हारा इस्लाम मजहब मुझे मौत से नहीं बचा सकता, तो फिर मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म में रहकर ही मृत्यु का वरण क्यों न करूँ ?

उन्होंने जल्लाद से कहा कि अपना आरा तेज चलाओ, जिससे मैं शीघ्र अपने प्रभु के धाम पहुँच सकूँ. यह कहकर वे ठहाका मार कर हँसने लगे. काजी ने कहा कि वह मृत्यु के भय पागल हो गया ह।

भाई जी ने कहा – मैं डरा नहीं हूँ. मुझे प्रसन्नता है कि मैं धर्म पर स्थिर हूँ. जो धर्म पर अडिग रहता है, उसके मुख पर लाली रहती है; पर जो धर्म से विमुख हो जाता है, उसका मुँह काला हो जाता है. कुछ ही देर में उनके शरीर के दो टुकड़े हो गये. आज त्याग , न्याय और बलिदान की उस उच्चतम प्रतिमूर्ति को सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन और वन्दन करते हुए ना सिर्फ भारत के लाल भाई मतिदास का गौरवमय इतिहास संसार के सामने लाते रहने का संकल्प लेता है अपितु उन्हें दुनिया की सबसे क्रूरतम मौत देने वाले औरंगजेब और उनके आज भी समाज में फैले तमाम शुभचिंतको को बेनकाब करने का संकल्प दोहराता है . भाई मतिदास अमर रहने .

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