Blog

NKS

Yatharth Sandesh
18 Nov, 2017(Hindi)
Dharm

यदि गीता को धर्मशास्त्र के रूप मैं मान्यता मिल जाती है !

/
0 Reviews
Write a Review

3104 Views

 
अनेकांे धार्मिक संस्थाओं द्वारा भ्रामक प्रचार करके लोगों को गुमराह करने का अवसर नहीं मिलेगा, क्योंकि गीता एक धर्म का बोध कराती है।
जिन कारणों से मानव-मानव के बीच मतभेद जनित दूरियां बढ़ी हैं, वह सदैव के लिए समाप्त हो जाएगी।
सम्पूर्ण मानव जाति एक ईश्वर की संतान है गीता इसका भली प्रकार बोध करा कर भेदभाव से उत्पन्न अनेकों प्रकार के संघर्ष से होने वाली विभिन्न प्रकार की क्षति में विराम लगा देगी।
जिसमें मनुष्य का सर्वथा पतन है, ऐसी किसी भी प्रकार की संकीर्ण मानसिकता को बढावा देने का तथा अपनाने का कभी किसी को अवसर नहीं मिलेगा, क्योंकि गीता प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन एवं कर्तव्य के प्रति आश्वस्त करते हुए शाश्वत एवं अनन्त जीवन प्रदान करती है।
गीता में किसी भी प्रकार की मानवीय दुर्बलताओं को कोई स्थान नहीं है, जो मनुष्य के सामने अनेकों प्रकार की समस्यायें एवं संकट उत्पन्न करती है, अतः मनुष्य स्वतः समस्याओं से छुटकारा पा जायेगा, क्योंकि गीता कथन पर नहीं अपितु कर्म पर विश्वास दिलाती है।
धार्मिक, सामाजिक पारम्परिक एवं राजनीतिक संकीर्णता से ऊपर उठाकर सम्पूर्ण मानव जाति को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है तथा प्रत्येक व्यक्ति को उसके वास्तविक जीवन से परिचित कराया जा सकता है।
धार्मिक भं्राति एवं पारम्परिक संकीर्णता के कारण कहीं न कहीं खूनी संघर्ष होते रहते हैं, जिस कारण अपूर्ण जन-धन-हानि होती है, हजारों साल से चला आ रहा यह सिलसिला खत्म हो जायेगा, प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रतिनिधि का जीवन सुरक्षित एवं व्यवस्थित हो जायेगा।
मानव जाति के बीच व्याप्त अनेक प्रकार की संकीर्णता के कारण देश के प्रतिनिधियों को असमय खोना पड़ता है, एक दूसरे के षडयन्त्र का शिकार बनना पड़ता है। जिसे सभी देशवासी एक अपूर्णनीय क्षति मानते हैं। इन सब पर विराम लग जायेगा, क्योंकि गीतोक्त साधन निर्दोष जीवन प्रदान करता है, चाह कर भी कोई समाज में किसी प्रकार की दरार नहीं डाल सकता है, क्षति नहीं पहुंचा सकता है।
गीता सम्पूर्ण मानव जाति की सम्पूर्ण समस्याओं का एक पूर्ण समाधान है, यह मानव जाति के बीच दूरी को मिटाकर एक सत्य का बोध कराती है।
गीता पांच हजार वर्ष से अधिक भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली हुई अमरवाणी है। इससे पूर्व विश्व के किसी संत एवं दार्शनिक ने ईश्वर के संबंध में तथा मानव कल्याण के विषय में कुछ भी नहीं कहा है, संसार में प्रचलित सभी धर्म शास्त्रों से यदि एक परमात्मा की चर्चा निकाल दी जाये तो समाज को देने के लिए उसके पास दुःख के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचेगा। प्रचलित सभी धर्म एवं धर्मशास्त्र गीता के बाद के हैं गीता एक परामात्मा में विश्वास दिलाती है तथा उसी में सम्पूर्ण मानव जाति का परम कल्याण निहित है, इसलिये गीता सम्पूर्ण मानव जाति का अतक्र्य धर्मशास्त्र है, साथ ही सम्पूर्ण धर्म शास्त्रों का अकेले ही प्रतिनिधित्व भी करती है क्योंकि सभी धर्मशास्त्र गीता की प्रतिध्वनि मात्र है।

Featured Posts

Reviews

Write a Review

Select Rating