भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल , पुष्कर के मेले और स्नान पर रोक
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बात उस समय से है जब दिल्ली के मुगल बादशाह ने हिन्दुओं के पवित्र शहर पुष्कर के मेले और स्नान पर रोक लगा दी थी।
यह बात *भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल* की माताजी को पता चली तो उसने अपने बेटे महाराजा सूरजमल को पुष्कर का स्नान करने की इच्छा जताई । महाराजा सूरजमल ने बिना कुछ सोच विचार किए अपनी मां को पुष्कर स्नान करवाने का वचन दे दिया ।
तब सूरजमल के सभी मंत्रियों और शुभचिंतकों ने सूरजमल को ऐसा न करने की सलाह दी और अपने फैसले पर पुर्नविचार करने की बात कही ।
तब सूरजमल ने कहा कि-
"अगर मां ने स्नान की इच्छा जताई है तो स्नान जरूर होगा । और जो काम करना है तो करना है उसके लिए सोचना की आवश्यकता नहीं ।"
तब सूरजमल महाराज अपनी मां को अपनी एक बलशाली योद्धाओं की सेना टुकड़ी लेकर भरतपुर से पुष्कर के लिए रवाना हुआ । भरतपुर से पुष्कर के बीच में पडने वाली सभी मुस्लिम रियासतों ने सूरजमल को रोकने का प्रण किया ।
लेकिन-
सूरजमल के रास्ते में जो भी मुस्लिम रियायत आती , जो भी मुगल सेना आती उसे काटते - चिरते हुए सूरजमल अजेय होकर आगे बढ़ता रहा । सूरजमल मुस्लिम शासकों की सेना की लाशें बिछाता हुए पुष्कर तक पहुंच गया और अपनी मां को स्नान करवाया ।
ऐसे ही वापिस लौटते वक्त मुसलमानों ने सूरजमल को रोकने की भरतपुर कोशिशें की लेकिन सूरजमल जैसे मुसलमानों को चीरता हुआ गया था ऐसे ही एक एक मुसलमान रियासत को चीरता हुआ भरतपुर वापिस लौट आया ।
वापिस लौटकर सूरजमल महाराज ने दिल्ली मुगल बादशाह को पत्र लिखा...
कि-
"मुसलमानों में कोई ऐसा वीर नहीं जो हिन्दुओं को पुष्कर मेले में स्नान करने से रोक पाए । अबकी बार तो मेरी माता जी पुष्कर नहाई हैं, अगली बार भरतपुर का हर हिन्दू पुष्कर में स्नान करने के लिए जाएगा । पहले ही बता दिया है, अभी से सूरजमल को रोकने की तैयारी में लग जाओ ।"
यह पत्र पढ़कर दिल्ली के बादशाह ने शर्म से पानी पानी होकर अपना हुक्म वापिस ले लिया।
इस घटना पर इतिहासकार लिखते हैं...
कि-
"संपूर्ण भारत के पूरे इतिहास में यह हिन्दू राजा द्वारा मुसलमानों पर किया गया सबसे भयानक आक्रमण था, जब एक हिन्दू राजा ने एक, दो नहीं अपितु अनेकों मुस्लिम रियासतों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें चीरता हुआ अपने गंतव्य स्थल तक जा पहुंचा और चीरता हुआ अपने राज में वापिस आ गया।"
वन्दे मातरम्