रुद्र महालय मंदिर (गुजरात) का पूर्ण निर्माण
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रुद्र महालय मंदिर (गुजरात) का पूर्ण निर्माण चोथी पीढ़ी में महाराज जयसिंह ने किया । इस समय महाराज जयसिंह द्वारा प्रजा का ऋण माफ किया गया ओर इसी अवसर पर नव संबत चलवाया जो आज भी सम्पूर्ण गुजरात मे चलता हे । इस रुद्र महालय में एक हजार पाँच सो स्तभ थे, माणिक मुक्ता युक्त एक हजार मूर्तियाँ थीं, इस पर तीस हजार स्वर्ण कलश थे। जिन पर पताकाएँ फहराती थी । रुद्र महालय में पाषाण पर कलात्मक "गज" एवं "अश्व" उत्कीर्ण थे, अगणित जालियाँ पत्थरो पर खुदी थीं । कहा जाता हे यहाँ सात हजार धर्मशालाएँ थीं इनके रत्न जटित द्वारों की छटा निराली थी, मध्य में एकादश रुद्र के एकादश मंदिर थे । वर्ष 995 में मूलराज ने रुद्रमहालय की स्थापना की थी। वर्ष 1150(ई॰स॰1094) में सिद्धराज ने रुद्र महालया का विस्तार करके "श्री स्थल" का "सिद्धपुर" नामकरण किया था । महाराज मूलराज महान शिव भक्त थे । अपने परवर्ती जीवन में अपने पुत्र चावंड को राज्य सोप कर श्री स्थल (सिद्धपुर) में तपश्चर्या में व्यतीत किया। वहीं उनका स्वर्गवास हुआ ।
आज इस भव्य ओर विशाल रुद्रमहल को खण्डहर के रूप मे देखा जा सकता हे विभिन्न आततायी आक्रमण कारी लुटेरे बादशाहों ने तीन बार इसे तोड़ा ओर लूटा और बएक भाग में मस्जिद बना दी । इसके एक भाग को आदिलगंज (बाज़ार) का रूप दिया इस बारे में वहाँ फारसी ओर देवनागरी में शिलालेख है ।
साफ दिख रहा है दोनों तरफ़ मंदिर बीच में ज़बरन मस्जिद घुसेड़कर बना दी । हमारे स्वर्णिम इतिहास का काला सच है ये ।।
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